छत्तीसगढअकलतराभरत के नेतृत्व में क्या होगा भाजपा का ? जिले का कमान...

भरत के नेतृत्व में क्या होगा भाजपा का ? जिले का कमान सौंपने के पीछे क्या है अंदरूनी खेल ? जानिए अंदर की बात, पढिये पूरी खबर

जशपुर,

भाजपा के वरिष्ठ नेता भरत सिंह को संगठन ने इस बार जिले का कमान सौंपा है। उन्हें जिले का नेतृत्व मिलने से भी बड़ा विषय यह है कि आख़िर जशपुर भाजपा के नेतृत्व की जिम्मेदारी इन्हें क्यों दी गई और इससे संगठन को कितनी मजबूती मिलेगी ? इन सवालों का जवाब ढूंढने से पहले यह बताना जरूरी है कि भरत सिंह बीते 40 वर्षो से संगठन में कई दायित्वों का निर्वहन कर चुके भाजपा के सीनियर नेताओं में से एक हैं और कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में पिरोकर रखने के बेहतरीन हूनर के चलते इनकी गिनती काफी लंबे वक्त से सीनियर और प्रमुख सलाहकारों में इनकी गिनती होती रही है। अपनी राजनीतिक कौशल के चलते सत्ता में शुरू से इनका मजबूत दखल रहा लेकिन तमाम राजनीतिक शक्तियों होने के बावजूद कभी भी किसी विवाद में न रहना, निर्विवाद छवि बनाये रखना इनकी राजनीतिक दक्षता को बताने के लिए काफी है। 

बहरहाल अब यह बताना जरूरी है कि मुख्यमन्त्री के गृह जिले की कमान हाथ मे लेने वाले भरत सिंह के नेतृत्व से संगठन को क्या लाभ हो सकता है। इस भाजपा के नेताओ की अलग अलग राय है। ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि विपक्ष से ज्यादा सत्ता में रहकर संगठन को एकजुट रखना बड़ा चैलेंज होता है। सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं ज्यादा होती है इस वजह से सत्ता दल को असंतोष झेलना पड़ता है ऐसे में पार्टी कोई भी हो सशक्त नेतृत्व की जरूरत होती है और भरत सिंह में नेतृत्व क्षमता कूट कूट कर भरा है।

जशपुर शुरू से ही काफी चैलेंजिंग और प्रदेश भर में एक खाष राजनीतिक पहचान रखने वाला जिला रहा है। जशपुर को एक वक्त में भाजपा की प्रयोगशाला कहा जाता था इस वजह से शुरू से ही जिले का नेतृत्व सशक्त हाथों में रहा लेकिन मुख्यमन्त्री का गृह जिला होने के बाद संगठन के सामने चुनौतियां ज्यादा बढ़ गयी है। कुछ ही दिनों बाद नगरी निकाय और पंचायत चुनावों की घोषणा होनी है। सत्ता पक्ष के लिए चुनाव जीतना आसान हो सकता है लेकिन दावेदारों की फेहरिस्त को सम्हालना कितनी बड़ी चुनौती होती है यह बताने की जरूरत नहीं। उन्हें तो बिल्कुल नहीं जो राजनीति से वास्ता रखते हैं।इन परिस्थियों से निपटने के लिए भी जबरदस्त नेतृत्व क्षमता की जरूरत होती है और पार्टी को कहीं न कहीं यह क्षमता भरत सिंह में दिखी और उन्हें वीवीआईपी जिले का कमान सौंपा।

हांलाकि जिले के पूर्व भाजपा अध्यक्ष सुनील गुप्ता के नेतृत्व में 2018 के चुनाव में जिले की तीनों सीट गंवा चुकी भाजपा को 2023 में तीनों सीट की वापसी हुई यह भी एक इतिहास है जिसकी चर्चा आये दिन सोशल मीडिया में हो रही है।

आगे क्या होगा ? संगठन को कितनी मजबूती मिलेगी ? क्या कुछ नया होगा यह तो आने वाला वक़्त बताएगा फिलहाल भरत सिंह के कमान मिलने से भाजपा के कार्यकर्ताओ में नया जोश जरूर आया है।

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जशपुर, भाजपा के वरिष्ठ नेता भरत सिंह को संगठन ने इस बार जिले का कमान सौंपा है। उन्हें जिले का नेतृत्व मिलने से भी बड़ा विषय यह है कि आख़िर जशपुर भाजपा के नेतृत्व की जिम्मेदारी इन्हें क्यों दी गई और इससे संगठन को कितनी मजबूती मिलेगी ? इन सवालों का जवाब ढूंढने से पहले यह बताना जरूरी है कि भरत सिंह बीते 40 वर्षो से संगठन में कई दायित्वों का निर्वहन कर चुके भाजपा के सीनियर नेताओं में से एक हैं और कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में पिरोकर रखने के बेहतरीन हूनर के चलते इनकी गिनती काफी लंबे वक्त से सीनियर और प्रमुख सलाहकारों में इनकी गिनती होती रही है। अपनी राजनीतिक कौशल के चलते सत्ता में शुरू से इनका मजबूत दखल रहा लेकिन तमाम राजनीतिक शक्तियों होने के बावजूद कभी भी किसी विवाद में न रहना, निर्विवाद छवि बनाये रखना इनकी राजनीतिक दक्षता को बताने के लिए काफी है।  बहरहाल अब यह बताना जरूरी है कि मुख्यमन्त्री के गृह जिले की कमान हाथ मे लेने वाले भरत सिंह के नेतृत्व से संगठन को क्या लाभ हो सकता है। इस भाजपा के नेताओ की अलग अलग राय है। ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि विपक्ष से ज्यादा सत्ता में रहकर संगठन को एकजुट रखना बड़ा चैलेंज होता है। सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं ज्यादा होती है इस वजह से सत्ता दल को असंतोष झेलना पड़ता है ऐसे में पार्टी कोई भी हो सशक्त नेतृत्व की जरूरत होती है और भरत सिंह में नेतृत्व क्षमता कूट कूट कर भरा है। जशपुर शुरू से ही काफी चैलेंजिंग और प्रदेश भर में एक खाष राजनीतिक पहचान रखने वाला जिला रहा है। जशपुर को एक वक्त में भाजपा की प्रयोगशाला कहा जाता था इस वजह से शुरू से ही जिले का नेतृत्व सशक्त हाथों में रहा लेकिन मुख्यमन्त्री का गृह जिला होने के बाद संगठन के सामने चुनौतियां ज्यादा बढ़ गयी है। कुछ ही दिनों बाद नगरी निकाय और पंचायत चुनावों की घोषणा होनी है। सत्ता पक्ष के लिए चुनाव जीतना आसान हो सकता है लेकिन दावेदारों की फेहरिस्त को सम्हालना कितनी बड़ी चुनौती होती है यह बताने की जरूरत नहीं। उन्हें तो बिल्कुल नहीं जो राजनीति से वास्ता रखते हैं।इन परिस्थियों से निपटने के लिए भी जबरदस्त नेतृत्व क्षमता की जरूरत होती है और पार्टी को कहीं न कहीं यह क्षमता भरत सिंह में दिखी और उन्हें वीवीआईपी जिले का कमान सौंपा। हांलाकि जिले के पूर्व भाजपा अध्यक्ष सुनील गुप्ता के नेतृत्व में 2018 के चुनाव में जिले की तीनों सीट गंवा चुकी भाजपा को 2023 में तीनों सीट की वापसी हुई यह भी एक इतिहास है जिसकी चर्चा आये दिन सोशल मीडिया में हो रही है। आगे क्या होगा ? संगठन को कितनी मजबूती मिलेगी ? क्या कुछ नया होगा यह तो आने वाला वक़्त बताएगा फिलहाल भरत सिंह के कमान मिलने से भाजपा के कार्यकर्ताओ में नया जोश जरूर आया है।
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