अन्य खबरेंआखिर कहां से आते हैं नागा साधु? रहस्य नहीं, अब जानिए हकीकत!

आखिर कहां से आते हैं नागा साधु? रहस्य नहीं, अब जानिए हकीकत!

नागा परंपरा की पूरी दुनिया रहस्यों से भरी हुई है. कुंभ के आते ही नागा जंगलों से निकल आते हैं. घोड़े, हाथी पर सवार होकर जुलूस निकालते हुए कुंभ की ओर कूच करने लगते हैं. न सिर्फ आते हैं बल्कि लौटते वक्त अपने साथ तमाम नए नागा साधुओं को भी ले जाते हैं. महाकुंभ में आने वाले नागा साधु जंगलों में रहते हैं. यह वह धारणा है जो सबसे आम तौर पर प्रचलित है. लेकिन सवाल यह है कि वे कौन-से जंगल हैं, जहां ये साधु वास्तव में निवास करते हैं?

इन दो क्षेत्रों में रहते हैं नागा साधु

नागा साधु मुख्यतः देश के दो क्षेत्रों में रहते हैं. पहला, केदारखंड, जो केदारनाथ के आसपास के जंगलों में स्थित है. यह क्षेत्र उत्तराखंड के गढ़वाल इलाके में आता है. दूसरा क्षेत्र नर्मदा नदी के किनारे फैले जंगल हैं, जिन्हें नर्मदाखंड कहा जाता है. ये जंगल मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले हुए हैं.

हिमालय या ऊंचे पहाड़ की गुफाओं में निवास करते हैं नागा

नागा साधु किसी न किसी अखाड़े, आश्रम या मंदिर से जुड़े होते हैं. अखाड़े, आश्रम या मंदिर में रहने वाले नागा साधु “नागाओं के समूह” में रहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ तप के लिए हिमालय या किसी ऊंचे पहाड़ की गुफाओं में निवास करते हैं. इनमें से कई अखाड़ा के नागा साधु पैदल भ्रमण कर भिक्षाटन करते हुए धुनी रमाते हैं.

बहुत रहस्मयी होता है नागा साधुओं का जीवन

नागा साधुओं का जीवन बहुत रहस्मयी होता है. कुंभ के बाद वह कहीं गायब हो जाते हैं. कहा जाता है कि नागा साधु जंगल के रास्ते से देर रात में यात्रा करते हैं. इसलिए ये किसी को नजर नहीं आते हैं. नागा साधु समय-समय पर अपनी जगह बदलते रहते हैं. इस कारण इनकी सही स्थिति का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है. ये लोग गुप्त स्थान पर रहकर ही तपस्या करते हैं.

कैसे बनते हैं नागा साधु?

नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है. यदि कोई नागा साधु बनाना चाहता तो उसकी प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही शुरु होती है. इसके लिए उन्हें ब्रह्मचर्य की परीक्षा देनी पड़ती है. इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक का समय लग जाता है. जिसके बाद महापुरुष का दर्जा मिलता है और फिर 5 गुरु भगवान शिव, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश निर्धारित किए जाते हैं. जिसके बाद नागाओं के बाल कटवाए जाते है. कुंभ के दौरान इन लोगों को गंगा नंदी में 108 डुबकियां भी लगानी पड़ती हैं.

खुद को मृत घोषित कर खुद करते हैं पिंड दान

महाकुंभ में ही तमाम सामान्य व्यक्ति जीते जी अपने आप को मृत घोषित करते हैं, फिर खुद और परिवार का पिंड दान करके गंगा किनारे सारे कपड़ों को त्याग करके बाकियों के साथ जंगल की ओर चल देते हैं. बिना पिंड दान के नागा साधु बनेंगे ही नहीं. चाहे पिता जीवत हो या मरा हो, इसके अलावा नागा साधु बनने से पहले व्यक्ति के सात पीड़ी का पिंड दान होता है. इसके अलावा व्यक्ति के शरीर का भी पिंड दान होता है, ऐसा इसलिए कि नागा साधुओं का मानना है कि उनके मरने के बाद उनका पिंड दान कौन करेगा. पिंड दान के बाद ही साधु को नागा की दीक्षा दी जाती है.

नागा का अर्थ

‘नागा’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ पहाड़ होता है और इस पर रहने वाले लोग ‘पहाड़ी’ या ‘नागा संन्यासी’ कहलाते हैं. कच्छारी भाषा में ‘नागा’ से तात्पर्य ‘एक युवा बहादुर सैनिक’ से भी है. ‘नागा’ का अर्थ बिना वस्त्रों के रहने वाले साधु भी है.

नागा साधुओं का इतिहास

बताया जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में सनातन धर्म की स्थापना के लिए देश के चार कोनों पर चार पीठों की स्थापना की. गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ. इन पीठों, मठों-मन्दिरों और सनातन धर्म की रक्षा के लिए आदिगुरु ने सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की. इन्हीं अखाड़ों के सैनिकों को धर्म रक्षक या नागा कहा जाता था.

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नागा परंपरा की पूरी दुनिया रहस्यों से भरी हुई है. कुंभ के आते ही नागा जंगलों से निकल आते हैं. घोड़े, हाथी पर सवार होकर जुलूस निकालते हुए कुंभ की ओर कूच करने लगते हैं. न सिर्फ आते हैं बल्कि लौटते वक्त अपने साथ तमाम नए नागा साधुओं को भी ले जाते हैं. महाकुंभ में आने वाले नागा साधु जंगलों में रहते हैं. यह वह धारणा है जो सबसे आम तौर पर प्रचलित है. लेकिन सवाल यह है कि वे कौन-से जंगल हैं, जहां ये साधु वास्तव में निवास करते हैं?

इन दो क्षेत्रों में रहते हैं नागा साधु

नागा साधु मुख्यतः देश के दो क्षेत्रों में रहते हैं. पहला, केदारखंड, जो केदारनाथ के आसपास के जंगलों में स्थित है. यह क्षेत्र उत्तराखंड के गढ़वाल इलाके में आता है. दूसरा क्षेत्र नर्मदा नदी के किनारे फैले जंगल हैं, जिन्हें नर्मदाखंड कहा जाता है. ये जंगल मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले हुए हैं.

हिमालय या ऊंचे पहाड़ की गुफाओं में निवास करते हैं नागा

नागा साधु किसी न किसी अखाड़े, आश्रम या मंदिर से जुड़े होते हैं. अखाड़े, आश्रम या मंदिर में रहने वाले नागा साधु “नागाओं के समूह” में रहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ तप के लिए हिमालय या किसी ऊंचे पहाड़ की गुफाओं में निवास करते हैं. इनमें से कई अखाड़ा के नागा साधु पैदल भ्रमण कर भिक्षाटन करते हुए धुनी रमाते हैं.

बहुत रहस्मयी होता है नागा साधुओं का जीवन

नागा साधुओं का जीवन बहुत रहस्मयी होता है. कुंभ के बाद वह कहीं गायब हो जाते हैं. कहा जाता है कि नागा साधु जंगल के रास्ते से देर रात में यात्रा करते हैं. इसलिए ये किसी को नजर नहीं आते हैं. नागा साधु समय-समय पर अपनी जगह बदलते रहते हैं. इस कारण इनकी सही स्थिति का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है. ये लोग गुप्त स्थान पर रहकर ही तपस्या करते हैं.

कैसे बनते हैं नागा साधु?

नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है. यदि कोई नागा साधु बनाना चाहता तो उसकी प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही शुरु होती है. इसके लिए उन्हें ब्रह्मचर्य की परीक्षा देनी पड़ती है. इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक का समय लग जाता है. जिसके बाद महापुरुष का दर्जा मिलता है और फिर 5 गुरु भगवान शिव, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश निर्धारित किए जाते हैं. जिसके बाद नागाओं के बाल कटवाए जाते है. कुंभ के दौरान इन लोगों को गंगा नंदी में 108 डुबकियां भी लगानी पड़ती हैं.

खुद को मृत घोषित कर खुद करते हैं पिंड दान

महाकुंभ में ही तमाम सामान्य व्यक्ति जीते जी अपने आप को मृत घोषित करते हैं, फिर खुद और परिवार का पिंड दान करके गंगा किनारे सारे कपड़ों को त्याग करके बाकियों के साथ जंगल की ओर चल देते हैं. बिना पिंड दान के नागा साधु बनेंगे ही नहीं. चाहे पिता जीवत हो या मरा हो, इसके अलावा नागा साधु बनने से पहले व्यक्ति के सात पीड़ी का पिंड दान होता है. इसके अलावा व्यक्ति के शरीर का भी पिंड दान होता है, ऐसा इसलिए कि नागा साधुओं का मानना है कि उनके मरने के बाद उनका पिंड दान कौन करेगा. पिंड दान के बाद ही साधु को नागा की दीक्षा दी जाती है.

नागा का अर्थ

‘नागा’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ पहाड़ होता है और इस पर रहने वाले लोग ‘पहाड़ी’ या ‘नागा संन्यासी’ कहलाते हैं. कच्छारी भाषा में ‘नागा’ से तात्पर्य ‘एक युवा बहादुर सैनिक’ से भी है. ‘नागा’ का अर्थ बिना वस्त्रों के रहने वाले साधु भी है.

नागा साधुओं का इतिहास

बताया जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में सनातन धर्म की स्थापना के लिए देश के चार कोनों पर चार पीठों की स्थापना की. गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ. इन पीठों, मठों-मन्दिरों और सनातन धर्म की रक्षा के लिए आदिगुरु ने सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की. इन्हीं अखाड़ों के सैनिकों को धर्म रक्षक या नागा कहा जाता था.
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