शेख हसीना तख्तापलट के बाद भारत आ गई थीं. बांग्लादेश की सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री और आवामी लीग की नेता शेख हसीना के खिलाफ सोमवार को अरेस्ट वारंट जारी किया, साथ ही भारत से शेख हसीना को उसे सौंपने की माँग की है. इसके लिए यूनुस सरकार ने भारत को एक राजनयिक पत्र भी लिखा है. यूनुस सरकार ने शेख हसीना पर हत्या, अपहरण और देशद्रोह जैसे गंभीर आरोपों में 225 से अधिक मामले दर्ज किए हैं. इन मामलों की सुनवाई के दौरान, शेख हसीना, उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों, सलाहकारों और सैन्य और सिविल अधिकारियों के खिलाफ बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं.
बांग्लादेश ने दी चेतावनी
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा, “हमने भारत सरकार को एक मौखिक नोट भेजा है, जिसमें कहा गया है कि बांग्लादेश न्यायिक प्रक्रिया के लिए हसीना को वापस चाहता है, शेख हसीना को लेकर बांग्लादेश ने चेतावनी दी है कि पूर्व प्रधानमंत्री की भारत में रहने और लगातार बयान देने से भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव बढ़ सकता है.
वहीं, बांग्लादेश के गृह सलाहकार जहाँगीर आलम ने कहा कि उनके देश ने भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करते हुए विदेश मंत्रालय को पत्र भेजा है. बांग्लादेश के कानून सलाहकार आसिफ नजरूल ने कहा कि अगर भारत संधि के किसी प्रावधान का हवाला देकर प्रत्यर्पण से इनकार करता है तो देश इसका विरोध करेगा.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने पिछले महीने अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर कहा कि वे 77 वर्षीय शेख हसीना के प्रत्यर्पण की माँग करेंगे, उन्होंने कहा, “हमें हर हत्या में न्याय सुनिश्चित करना है.” 5 अगस्त को 16 साल पुरानी उनकी सरकार का तख्ता पलट दिया गया था.
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण समझौता
भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 से ही प्रत्यर्पण संधि है, जिसे 2016 में संशोधित किया गया था, उग्रवाद और आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था. भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों से आए उग्रवादी समूहों के अपराधी किसी घटना को अंजाम देने के बाद बांग्लादेश भाग रहे थे, और बांग्लादेश से प्रतिबंधित जमात उल मुजाहिदीन के आतंकी भारत में आ जा रहे थे.
इस प्रत्यर्पण संधि में सिर्फ अपराधियों, उग्रवादियों और आतंकियों आदि के प्रत्यर्पण की बात है, न कि राजनीतिक प्रत्यर्पण. इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत राजनीति से जुड़े किसी भी व्यक्ति के प्रत्यर्पण को अस्वीकार कर सकता है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति पर हत्या और किडनैपिंग जैसे संगीन मामले दर्ज हैं, तो प्रत्यर्पण को रोका नहीं जा सकता. हालांकि, 2016 में इस संधिमें एक संशोधन किया गया.
प्रत्यर्पण समझौते के अनुच्छेद 8 में कहा गया है कि ऐसे मामले में प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है अगर आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हों या फिर आरोप सैन्य अपराधों से जुड़े हों जो सामान्य आपराधिक कानून के तहत मान्य नहीं हैं, तो प्रत्यर्पण की माँग करने वाले देश को अपराध का सबूत भी नहीं देना होगा.
भारत ने कहा- वर्बल नोट मिला है
भारत के विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने देर शाम एक साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा, “हमें बांग्लादेश उच्चाोग से एक नोट वर्बल प्राप्त हुआ है जो प्रत्यर्पण से संबंधित है. इस बारे में हमारे पास साझा करने के लिए और कोई सूचना नहीं है.”
शेख हसीना के पास भारतीय कानून का सहारा लेने का अधिकार
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि प्रत्यर्पण से जुड़े आग्रह को स्वीकार या अस्वीकार करने की एक पूरी प्रक्रिया है, जिसमें पहले आग्रह पत्र की समीक्षा की जाती है और फिर उस पर केंद्र सरकार के दूसरे मंत्रालयों और विभागों की राय मांगी जाती है. जिस व्यक्ति को प्रत्यर्पित करने की मांग की गई है, उसे अपना पक्ष रखने का भी अधिकार है. अगर सरकार के स्तर पर प्रत्यर्पित करने का निर्णय लिया जाता है, तो आरोपित व्यक्ति को भारतीय कानून का सहारा लेने का भी अधिकार है.