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जशपुर के व्यापारियों पर भारी पड़ गयी इनकी “सादगी” ! कहां करोड़ो कमाते थे आज “बोहनी” भी मयस्सर नहीं हुआ,

जशपुर,

करोड़ो रूपये की आमदनी और बिजनेस देने वाला क्रिसमस का त्योहार इस साल व्यापारियों को खून के आंसू रोने पर मजबूर कर रहा है। जो व्यापारी इस त्योहार में करोड़ो कमाते थे उन्हें इस बार “बोहनी” भी मयस्सर नहीं है।

ईसाई समुदाय बाहुल्य जिला जशपुर में इस बार क्रिसमस का त्योहार व्यापारियों को “बुरे दिन” दिखा रहा है। बाजारों का जायजा लिया तब पता चला कि इस बार ईसाई समुदाय ने सादगी पूर्वक क्रिसमस का त्योहार मनाने का एलान कर दिया है और समाज की यही सादगी व्यापारियों को नुकसान पहुंचा गया। दिसम्बर माह में पूरे माह भर खरीददारी करने वाले इसाईसमाज समाज के लोग इस साल न तो बाजारों से खरीददारी कर रहे हैं ना ही त्योहार के प्रति उनमें कुछ ज्यादा उत्साह ही दिख रहा है।

कुनकुरी जहाँ एशिया का दूसरा बड़ा गिरिजाघर है और यहाँ का क्रिसमस काफी खाश माना जाता है। देश भर में और विदेशों में नौकरी करने वाले दिसम्बर से ही गाँव आना शुरू कर देते हैं और बाजार की रौनक बढ़ने लग जाती है लेकिन  इस साल ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा। लोग त्योहार के मौके पर गांव तो आ रहेहैं लेकिन बाजारों में उनके द्वारा खरीददारी नहीं की जा रही है।

कुनकुरी में वर्षों से क्रिसमस के मौक़े पर सेल लगाने वाले व्यापारियों का कहना है कि 20 वर्षो में ऐसा पहली बार हो रहा है कि दिसम्बर के महीने में किसी किसी दिन बोहनी भी नहीं हो रहा ।

रविवार को क्रिसमस का आखिरी बाजार था और जब हम बाजारों का जायजा लेने कुनकुरी बाजार डांड पहुँचे तो पाया कि अधिकांश छपरियों में सन्नाटे पसरे हुए थे किन्हीं किन्ही दुकानों में इक्के दुक्के ग्राहक दिखे भी तो उन ग्राहकों का ताल्लुक क्रिसमस से नहीं था। यहाँ के दुकानदारों ने बताया कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है ? ग्राहक खरीददारी के लिए क्यों नहीं आ रहे? एक बुजुर्ग दुकानदार ने बताया कि 1991-92 के बाद से क्रिसमस के बाजार में गिरावट आनी शुरू हो गयी थी लेकिन इस साल जैसी गिरावट कभी नहीं आयी।

न केवल क्रिसमस बल्कि सामान्य दिनों में भी यहां के ज्यादातर बाजार और बिजनेस ईसाई समुदाय पर निर्भर है लेकिन क्रिसमस इनका सबसे बड़ा त्योहार है इसलिए इस त्योहार में यहाँ का बिजनेस उफान पर होता है।

अब सवाल यह भी है कि ईसाई समुदाय इस साल क्रिसमस जैसे बड़े त्योहार को इतनी सादगी से क्यों मना रहा है? इस सवाल का सीधा सीधा जवाब तो कोई नहीं दे रहा है लेकिन दबी जूबान से यह जरूर बता रहे है कि विगत माह जशपुर विधायक रायमुनि भगत द्वारा ईसा मसीह को लेकर दिए गए विवादित बयान के बाद जपजे विवाद की यह परिणीति है। विधायक के बयान के बाद पंडित धीरेंद्र शास्त्री द्वारा कुनकुरी में घरवापसी की घोषणा से ईसाई समुदाय काफी आहत है और आक्रोशित भी। आंतरिक आक्रोश के चलते इस बार समुदाय के लोगों ने सादगीपूर्ण तरीके से त्योहार मनाने का निर्णय लिया है। हांलाकि कुछ लोग इसे अघोषित “आर्थिक बहिष्कार”भी मान रहे हैं।

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जशपुर, करोड़ो रूपये की आमदनी और बिजनेस देने वाला क्रिसमस का त्योहार इस साल व्यापारियों को खून के आंसू रोने पर मजबूर कर रहा है। जो व्यापारी इस त्योहार में करोड़ो कमाते थे उन्हें इस बार "बोहनी" भी मयस्सर नहीं है। ईसाई समुदाय बाहुल्य जिला जशपुर में इस बार क्रिसमस का त्योहार व्यापारियों को "बुरे दिन" दिखा रहा है। बाजारों का जायजा लिया तब पता चला कि इस बार ईसाई समुदाय ने सादगी पूर्वक क्रिसमस का त्योहार मनाने का एलान कर दिया है और समाज की यही सादगी व्यापारियों को नुकसान पहुंचा गया। दिसम्बर माह में पूरे माह भर खरीददारी करने वाले इसाईसमाज समाज के लोग इस साल न तो बाजारों से खरीददारी कर रहे हैं ना ही त्योहार के प्रति उनमें कुछ ज्यादा उत्साह ही दिख रहा है। कुनकुरी जहाँ एशिया का दूसरा बड़ा गिरिजाघर है और यहाँ का क्रिसमस काफी खाश माना जाता है। देश भर में और विदेशों में नौकरी करने वाले दिसम्बर से ही गाँव आना शुरू कर देते हैं और बाजार की रौनक बढ़ने लग जाती है लेकिन  इस साल ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा। लोग त्योहार के मौके पर गांव तो आ रहेहैं लेकिन बाजारों में उनके द्वारा खरीददारी नहीं की जा रही है। कुनकुरी में वर्षों से क्रिसमस के मौक़े पर सेल लगाने वाले व्यापारियों का कहना है कि 20 वर्षो में ऐसा पहली बार हो रहा है कि दिसम्बर के महीने में किसी किसी दिन बोहनी भी नहीं हो रहा । रविवार को क्रिसमस का आखिरी बाजार था और जब हम बाजारों का जायजा लेने कुनकुरी बाजार डांड पहुँचे तो पाया कि अधिकांश छपरियों में सन्नाटे पसरे हुए थे किन्हीं किन्ही दुकानों में इक्के दुक्के ग्राहक दिखे भी तो उन ग्राहकों का ताल्लुक क्रिसमस से नहीं था। यहाँ के दुकानदारों ने बताया कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है ? ग्राहक खरीददारी के लिए क्यों नहीं आ रहे? एक बुजुर्ग दुकानदार ने बताया कि 1991-92 के बाद से क्रिसमस के बाजार में गिरावट आनी शुरू हो गयी थी लेकिन इस साल जैसी गिरावट कभी नहीं आयी। न केवल क्रिसमस बल्कि सामान्य दिनों में भी यहां के ज्यादातर बाजार और बिजनेस ईसाई समुदाय पर निर्भर है लेकिन क्रिसमस इनका सबसे बड़ा त्योहार है इसलिए इस त्योहार में यहाँ का बिजनेस उफान पर होता है। अब सवाल यह भी है कि ईसाई समुदाय इस साल क्रिसमस जैसे बड़े त्योहार को इतनी सादगी से क्यों मना रहा है? इस सवाल का सीधा सीधा जवाब तो कोई नहीं दे रहा है लेकिन दबी जूबान से यह जरूर बता रहे है कि विगत माह जशपुर विधायक रायमुनि भगत द्वारा ईसा मसीह को लेकर दिए गए विवादित बयान के बाद जपजे विवाद की यह परिणीति है। विधायक के बयान के बाद पंडित धीरेंद्र शास्त्री द्वारा कुनकुरी में घरवापसी की घोषणा से ईसाई समुदाय काफी आहत है और आक्रोशित भी। आंतरिक आक्रोश के चलते इस बार समुदाय के लोगों ने सादगीपूर्ण तरीके से त्योहार मनाने का निर्णय लिया है। हांलाकि कुछ लोग इसे अघोषित "आर्थिक बहिष्कार"भी मान रहे हैं।
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