छत्तीसगढअकलतरानैला-बलौदा मार्ग बना जानलेवा, ओवरलोड वाहनों से सड़कें ध्वस्त, उधर मंत्री, कलेक्टर...

नैला-बलौदा मार्ग बना जानलेवा, ओवरलोड वाहनों से सड़कें ध्वस्त, उधर मंत्री, कलेक्टर का होता निवास, तो चमकती रहती सड़क, आम जनता सड़कों पर बेबस

जांजगीर-चांपा,
बाबूजी धीरे चलना राह में ज़रा सम्भालना… बड़े धोखे है, बड़े धोखे हैं इस राह में, जी हाँ इस राह में चलना याने जान हथेली पर लेकर निकलना। जहां मंत्री और कलेक्टर के आवासों के पास की सड़क हमेशा चमकते रहती है, वहीं आम जनता की जिंदगी सड़कों पर हर दिन खतरे में डाल दी जाती है। जिला मुख्यालय से बलौदा को जोड़ने वाली नैला-बलौदा सड़क की हालत ऐसी हो गई है कि अब यह राहगीरों के लिए जानलेवा बन चुकी है। जावलपुर, जर्वे, सिवनी, कन्हाईबंद और रेलवे ओवरब्रिज से गुजरने वाला यह मार्ग आज गड्ढों का पर्याय बन गया है। सड़क पर बने गहरे गड्ढे वाहन चालकों और राहगीरों के लिए यमराज से कम नहीं।
धूल, गड्ढे और मौत का सफर
सड़क पर कोयला ढोने वाले भारी वाहनों की आवाजाही से हालात बद से बदतर हो गए हैं। रोजाना हजारों लोग इस मार्ग से सफर करते हैं, लेकिन सड़क पर पानी छिड़काव न होने के कारण उड़ने वाली धूल उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रही है। कई लोग सांस और दमा जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। गड्ढों की वजह से छोटे वाहन चालकों के लिए तो यह सड़क किसी जाल से कम नहीं, जहां हर समय वाहन पलटने का डर बना रहता है।
ओवरलोड वाहन बने मुख्य समस्या
इस सड़क को सामान्य क्षमता वाले वाहनों के लिए बनाया गया था, लेकिन आज इस पर 50-55 टन तक के ओवरलोड वाहन दौड़ रहे हैं। ये वाहन कोयला लेकर नैला रेलवे साइडिंग तक आते-जाते हैं, जिससे सड़कें जल्दी खराब हो रही हैं। प्रशासन का ध्यान सड़कों की मरम्मत की बजाय केवल वाहनों की चालान कार्रवाई तक सीमित है।
प्रशासन की अनदेखी, जनता का आक्रोश
क्षेत्रवासियों ने कई बार प्रशासन से इस सड़क की मरम्मत की मांग की, लेकिन हर बार उनकी आवाजें अनसुनी रह गईं। धरना प्रदर्शन के बावजूद विभाग द्वारा इस सड़क पर मरम्मत का कोई कार्य नहीं किया गया है। लोगों को अब लगने लगा है कि प्रशासन किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहा है।
हर तरफ खामोशी, पर जनता का गुस्सा चरम पर
जहां मंत्री और अधिकारियों के निवास पास की सड़कों को चमकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती, वहीं जनता को अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सड़क पर बने गड्ढों के कारण आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं, लेकिन प्रशासन की उदासीनता ने क्षेत्रवासियों के आक्रोश को और बढ़ा दिया है।
सड़क बनेगी, लेकिन कब तक टिकेगी?
अगर सड़क की मरम्मत की भी जाती है, तो ओवरलोड वाहनों के चलते यह कुछ ही दिनों में फिर से खराब हो जाएगी। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। ओवरलोड वाहनों पर रोक लगाना और सड़कों की गुणवत्ता पर ध्यान देना अब अनिवार्य हो गया है।

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जांजगीर-चांपा,
बाबूजी धीरे चलना राह में ज़रा सम्भालना... बड़े धोखे है, बड़े धोखे हैं इस राह में, जी हाँ इस राह में चलना याने जान हथेली पर लेकर निकलना। जहां मंत्री और कलेक्टर के आवासों के पास की सड़क हमेशा चमकते रहती है, वहीं आम जनता की जिंदगी सड़कों पर हर दिन खतरे में डाल दी जाती है। जिला मुख्यालय से बलौदा को जोड़ने वाली नैला-बलौदा सड़क की हालत ऐसी हो गई है कि अब यह राहगीरों के लिए जानलेवा बन चुकी है। जावलपुर, जर्वे, सिवनी, कन्हाईबंद और रेलवे ओवरब्रिज से गुजरने वाला यह मार्ग आज गड्ढों का पर्याय बन गया है। सड़क पर बने गहरे गड्ढे वाहन चालकों और राहगीरों के लिए यमराज से कम नहीं।
धूल, गड्ढे और मौत का सफर
सड़क पर कोयला ढोने वाले भारी वाहनों की आवाजाही से हालात बद से बदतर हो गए हैं। रोजाना हजारों लोग इस मार्ग से सफर करते हैं, लेकिन सड़क पर पानी छिड़काव न होने के कारण उड़ने वाली धूल उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रही है। कई लोग सांस और दमा जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। गड्ढों की वजह से छोटे वाहन चालकों के लिए तो यह सड़क किसी जाल से कम नहीं, जहां हर समय वाहन पलटने का डर बना रहता है।
ओवरलोड वाहन बने मुख्य समस्या
इस सड़क को सामान्य क्षमता वाले वाहनों के लिए बनाया गया था, लेकिन आज इस पर 50-55 टन तक के ओवरलोड वाहन दौड़ रहे हैं। ये वाहन कोयला लेकर नैला रेलवे साइडिंग तक आते-जाते हैं, जिससे सड़कें जल्दी खराब हो रही हैं। प्रशासन का ध्यान सड़कों की मरम्मत की बजाय केवल वाहनों की चालान कार्रवाई तक सीमित है।
प्रशासन की अनदेखी, जनता का आक्रोश
क्षेत्रवासियों ने कई बार प्रशासन से इस सड़क की मरम्मत की मांग की, लेकिन हर बार उनकी आवाजें अनसुनी रह गईं। धरना प्रदर्शन के बावजूद विभाग द्वारा इस सड़क पर मरम्मत का कोई कार्य नहीं किया गया है। लोगों को अब लगने लगा है कि प्रशासन किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहा है।
हर तरफ खामोशी, पर जनता का गुस्सा चरम पर
जहां मंत्री और अधिकारियों के निवास पास की सड़कों को चमकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती, वहीं जनता को अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सड़क पर बने गड्ढों के कारण आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं, लेकिन प्रशासन की उदासीनता ने क्षेत्रवासियों के आक्रोश को और बढ़ा दिया है।
सड़क बनेगी, लेकिन कब तक टिकेगी?
अगर सड़क की मरम्मत की भी जाती है, तो ओवरलोड वाहनों के चलते यह कुछ ही दिनों में फिर से खराब हो जाएगी। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। ओवरलोड वाहनों पर रोक लगाना और सड़कों की गुणवत्ता पर ध्यान देना अब अनिवार्य हो गया है।
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