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गुजरात में ‘धरती का भगवान’ बनाने के गोखधंधे का भंडाफोड़, 32 साल से चल रहा था पूरा खेल, ₹70 हजार में डिग्री, 8वीं पास भी कर रहा था इलाज-

गुजरात पुलिस ने सूरत में फर्जी डॉक्टर बनाने वाले एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है। यह गिरोह पिछले 32 साल से पूरा खेल ऑपरेट कर रहा था। मामले में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 14 फर्जी डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है। इनमें से एक तो आठवीं पास है। वहीं एक फर्जी डॉक्टर शमीम अंसारी भी शामिल है, जिसके गलत इलाज की वजह से कुछ दिन पहले एक बच्ची की मौत हो गई थी।

गिरोह के 2 मुख्य आरोपी डॉ. रमेश गुजराती और बीके रावत के पास से पुलिस को सैकड़ों एप्लिकेशन और सर्टिफिकेट मिले हैं। यह गिरोह अब तक 1200 लोगों को फर्जी डॉक्टरी सर्टिफिकेट दे चुका था।

पुलिस ने खबर मिलने पर पांडेसरा में 3 क्लिनिक पर छापा मारा। जहां इनके पास से बैचलर ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथी मेडिसिन एंड सर्जरी के सर्टिफिकेट मिले, जिन्हें सूरत के ही 2 डॉक्टरों ने जारी किया था। इनकी जांच करने पर पता चला कि जो सर्टिफिकेट इन्हें दिया गया था, वह गुजरात सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है। पुलिस के साथ छापा मारने गई टीम ने भी कहा कि डिग्री फर्जी है।

₹70 हजार में देता था फर्जी डिग्री

यह गिरोह पिछले 32 साल से कम पढ़े-लिखे बेरोजगारों को 70 हजार में फर्जी डिग्रियां देने का काम कर रहा था। रजिस्ट्रेशन रिन्यू करवाने के लिए 5 हजार रुपए फीस भी लेता था। यह गिरोह अब तक 1200 लोगों को फर्जी डॉक्टरी सर्टिफिकेट दे चुका था।

रजिस्ट्रेशन वाली वेबसाइट भी फर्जी

रमेश गुजराती को पता चला कि भारत में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी के लिए कोई नियम-कानून नहीं हैं। इसके बाद उसने इसी कोर्स में डिग्री देने के लिए एक बोर्ड बनाने की प्लानिंग की। इसके लिए उसने पांच लोगों को काम पर रखा। उन्हें इलेक्ट्रो-होम्योपैथी में ट्रेनिंग दी। इनका रजिस्ट्रेशन करने वाली वेबसाइट भी फर्जी थी।

3 की जगह 2 साल में ही डिग्री

3 की जगह 2 साल में ही डिग्री पूरी करवाकर उन्हें इलेक्ट्रो-होम्योपैथी दवाएं लिखने की ट्रेनिंग दी। इन्होंने 70 हजार रुपए दिए इसके बाद 15 दिन के अंदर ही उन्हें सर्टिफिकेट दे दिए गए।

मुख्य आरोपी ने 1990 में की थी इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई

पकड़े गया मुख्य आरोपी डॉ. रमेश गुजराती ने कबूल किया कि उसने 1990 के दशक में ‌BHMS की पढ़ाई की थी। वह कई ट्रस्ट में वक्ता के तौर पर काम करता रहा, लेकिन जब इससे ज्यादा मुनाफा नहीं हुआ तो उसने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के क्षेत्र में कदम रखा। उसने यह गिरोह इसलिए शुरू किया क्योंकि भारत सरकार या राज्य सरकार ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के लिए कोई नियम लागू नहीं किए हैं।गुजराती ने 2002 में गोपीपुरा इलाके में एक कॉलेज शुरू किया था, लेकिन छात्रों की कमी के कारण कॉलेज बंद हो गया। इसके बाद उसने रावत के साथ मिलकर डिग्रियां बेचने का धंधा शुरू कर दिया।

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गुजरात पुलिस ने सूरत में फर्जी डॉक्टर बनाने वाले एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है। यह गिरोह पिछले 32 साल से पूरा खेल ऑपरेट कर रहा था। मामले में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 14 फर्जी डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है। इनमें से एक तो आठवीं पास है। वहीं एक फर्जी डॉक्टर शमीम अंसारी भी शामिल है, जिसके गलत इलाज की वजह से कुछ दिन पहले एक बच्ची की मौत हो गई थी।

गिरोह के 2 मुख्य आरोपी डॉ. रमेश गुजराती और बीके रावत के पास से पुलिस को सैकड़ों एप्लिकेशन और सर्टिफिकेट मिले हैं। यह गिरोह अब तक 1200 लोगों को फर्जी डॉक्टरी सर्टिफिकेट दे चुका था। पुलिस ने खबर मिलने पर पांडेसरा में 3 क्लिनिक पर छापा मारा। जहां इनके पास से बैचलर ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथी मेडिसिन एंड सर्जरी के सर्टिफिकेट मिले, जिन्हें सूरत के ही 2 डॉक्टरों ने जारी किया था। इनकी जांच करने पर पता चला कि जो सर्टिफिकेट इन्हें दिया गया था, वह गुजरात सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है। पुलिस के साथ छापा मारने गई टीम ने भी कहा कि डिग्री फर्जी है। ₹70 हजार में देता था फर्जी डिग्री यह गिरोह पिछले 32 साल से कम पढ़े-लिखे बेरोजगारों को 70 हजार में फर्जी डिग्रियां देने का काम कर रहा था। रजिस्ट्रेशन रिन्यू करवाने के लिए 5 हजार रुपए फीस भी लेता था। यह गिरोह अब तक 1200 लोगों को फर्जी डॉक्टरी सर्टिफिकेट दे चुका था। रजिस्ट्रेशन वाली वेबसाइट भी फर्जी रमेश गुजराती को पता चला कि भारत में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी के लिए कोई नियम-कानून नहीं हैं। इसके बाद उसने इसी कोर्स में डिग्री देने के लिए एक बोर्ड बनाने की प्लानिंग की। इसके लिए उसने पांच लोगों को काम पर रखा। उन्हें इलेक्ट्रो-होम्योपैथी में ट्रेनिंग दी। इनका रजिस्ट्रेशन करने वाली वेबसाइट भी फर्जी थी। 3 की जगह 2 साल में ही डिग्री 3 की जगह 2 साल में ही डिग्री पूरी करवाकर उन्हें इलेक्ट्रो-होम्योपैथी दवाएं लिखने की ट्रेनिंग दी। इन्होंने 70 हजार रुपए दिए इसके बाद 15 दिन के अंदर ही उन्हें सर्टिफिकेट दे दिए गए। मुख्य आरोपी ने 1990 में की थी इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई पकड़े गया मुख्य आरोपी डॉ. रमेश गुजराती ने कबूल किया कि उसने 1990 के दशक में ‌BHMS की पढ़ाई की थी। वह कई ट्रस्ट में वक्ता के तौर पर काम करता रहा, लेकिन जब इससे ज्यादा मुनाफा नहीं हुआ तो उसने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के क्षेत्र में कदम रखा। उसने यह गिरोह इसलिए शुरू किया क्योंकि भारत सरकार या राज्य सरकार ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के लिए कोई नियम लागू नहीं किए हैं।गुजराती ने 2002 में गोपीपुरा इलाके में एक कॉलेज शुरू किया था, लेकिन छात्रों की कमी के कारण कॉलेज बंद हो गया। इसके बाद उसने रावत के साथ मिलकर डिग्रियां बेचने का धंधा शुरू कर दिया।
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