न्यायाधीश भी मनुष्य हैं और उनसे भी गलतियां हो सकती हैं। इसलिए न्यायाधीशों की व्यक्तिगत आलोचना या निर्णयों में न्यायाधीशों के आचरण पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए। ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सोनू अग्निहोत्री की अपील स्वीकार करते हुए की है।
दरअसल सत्र न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करते समय जांच अधिकारी और एसएचओ के खिलाफ कार्रवाई वाले उनके आदेश के लिए हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की थी। पीठ ने कहा, किसी मामले में, कई ठोस फैसले लिखने के बाद, एक न्यायाधीश काम के दबाव या अन्य कारणों से एक फैसले में गलती कर सकता है। हाईकोर्ट हमेशा गलती को सुधार सकता है।
पीठ ने कहा कि गलतियां करना मानवीय स्वभाव है। हमारे देश की लगभग सभी अदालतें अत्यधिक बोझ से दबी हुई हैं। न्यायाधीश तनाव में काम करते हैं और हर न्यायाधीश से, चाहे वह किसी भी पद या स्थिति का क्यों न हो, गलतियां करने की संभावना होती है।
हालांकि ऐसा करते समय, यदि न्यायिक अधिकारी के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से आलोचना की जाती है, तो इससे न्यायिक अधिकारी को शर्मिंदगी के अलावा पूर्वाग्रह भी होता है। हमें याद रखना चाहिए कि जब हम सांविधानिक अदालतों में बैठते हैं तो हमसे भी गलतियां होने की आशंका होती है।
गलतियां करना मानवीय स्वभाव…
पीठ ने कहा कि गलतियां करना मानवीय स्वभाव है। हमारे देश की लगभग सभी अदालतें अत्यधिक बोझ से दबी हुई हैं। न्यायाधीश तनाव में काम करते हैं और हर न्यायाधीश से, चाहे वह किसी भी पद या स्थिति का क्यों न हो, गलतियां करने की संभावना होती है।
हमसे भी गलतियों की संभावना
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए त्रुटिपूर्ण आदेशों को निरस्त कर सकते हैं तथा अनावश्यक और अनुचित टिप्पणियों को हटा सकते हैं। पीठ ने कहा, हमें याद रखना चाहिए कि जब हम सांविधानिक अदालतों में बैठते हैं तो हमसे भी गलतियां होने की आशंका रहती है। किसी भी अदालत को अधीनस्थ अदालत नहीं कहा जा सकता।