रायगढ़,
पुसौर तहसील के ओडेकेरा पंचायत के सरायपाली गांव के एक दलित का घर सुर्खियों में है। गांव के लोगों ने कलेक्टर रायगढ़ को ज्ञापन देकर उसे तोड़े जाने की मांग की है। उसपर बेजा कब्जा का आरोप लगाया है। इससे पहले भी उसके घर का एक हिस्सा तोड़ दिया गया था। इस मामले पर अनुसूचित जाति के कथित कब्जाधारी बैसाखू राम ने इसे जातिगत विद्वेष बताया है और छोटी जाति के होने बाद भी बड़ा घर बनाने का खामियाजा उठाना बताया है।
बैसाखू राम चौहान जो नारायणपुर में प्रधान आरक्षक के पद पर तैनात है उसने 2010 में पुसौर तहसील के ओडेकरा पंचायत के सरायपाली गांव में घर बनाना शुरू कर दिया। वह इसी गांव का निवासी है जो पूर्वजों से वहीं रहता आ रहा है। वहीं उसका छोटा सा घर है। बाद में जब बैसाखू कमाने लगा तो थोड़ा सा पट्टे की जमीन और खरीद लिया और धीरे धीरे घर बनाने लगा। यह घर गांव में सबसे ज्यादा बड़ा था। बैसाखू का कहना है कि इसके बाद सरपंच हीराधर साहू ने कुछ ग्रामीणों के साथ ताहिल में बेजा कब्जा की शिकायत की जिसे तत्कालीन तहसीलदार ने खारिज कर दिया। इसके 6 माह बाद फिर से सरपंच और पंचों ने शिकायत की इसके बाद निर्माणाधीन कमरा, बाहरी दीवार इत्यादि तहसीलदार ने तोड़ दिया। फिर ग्रामीणों से बात कर उसने फिर से घर बना लिया और घर तैयार हो गया । अब फिर से ग्रामीणों ने कलेक्टर को शिकायत की है।
पूरा प्रकरण ये है
आड़ेकेरा गांव में खसरा नंबर 231/1 की जमीन है जिसका रकबा 2.497 हेक्टेयर है। रिकॉर्ड में यह जमीन शासकीय दर्ज है लेकिन इस पूरे जमीन पर लोगों का कब्जा है। यहां तक कि सरपंच और कई पंचों का भी। इसी जमीन पर बैसाखू का भी घर है। यदि उसका बेजा कब्जा है और उसपर कार्रवाई होना है तो बाकी कब्जाधारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही ? यह सवाल बैसाखू का है। उसका कहना है कि सरपंच सहित तमाम लोग यह चाहते हैं कि मैं छोटी जाति का हूं तो हमारा घर भी छोटा होना चाहिए। सिर्फ अनुसूचित जाति होने के कारण मुझपर टारगेट किया जा रहा है।
अधिकारियों की बात
इस मसले पर पुसौर ने नायब तहसीलदार पंकज मिश्रा ने बताया कि इस प्रकरण में शिकायत आई है। कलेक्टर जनदर्शन में शिकायत की गई थी, उसकी जांच की प्रक्रिया चल रही है। इससे पहले भी इसमें तोड़ फोड़ की कार्रवाई की गई है। अब वहां काबिज सभी लोगों को नोटिस दिया जा रहा है।
जातिगत विद्वेष के लिए भी कार्रवाई
इस गांव में जाति के नाम पर भी लोगों को परेशान किया जाता रहा है। पूर्व में भी ऐसे ही एक प्रकरण में इस गांव के 6 दबंग जाति के लोगों को जेल की हवा खानी पड़ चुकी है। जातिगत भेदभाव वैसे इस क्षेत्र के लिए नया नहीं हुआ। 2012 में पुसौर के ही छिछोर उमरिया नमक गांव में दबंगों ने बेजा कब्जा बताकर दलितों की खड़ी फसल मवेशियों को चरा दिया था और मामला हाइकोर्ट तक गया था।
मैं तो हिंदू हूं
पीड़ित बैसाखू का कहना है कि जाती के नाम पर मुझसे भेदभाव किया जा रहा है, मैं हिंदू नहीं हूं क्या ? वोट मांगने समय हिंदू और जैसे वोट खत्म हुआ वैसे मै दलित हो गया। उसका यह भी कहना है कि सरपंच और दबंग इस मामले में न सिर्फ अधिकारियों बल्कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी गलत जानकारी देकर भरमा रहे हैं।