छत्तीसगढअकलतराविष्णुदेव का सुशासन…मानव-हाथी द्वंद रोकने की दिशा में साय सरकार कर रही...

विष्णुदेव का सुशासन…मानव-हाथी द्वंद रोकने की दिशा में साय सरकार कर रही लगातार प्रयास

रायपुर,

छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग और बिलासपुर संभाग सहित ज्यादातर उत्तरी इलाका पिछले दो दशक से मानव-हाथी द्वंद की समस्या से ग्रसित है. यहां जंगली हाथियों के द्वारा किये जा रहे उत्पात की खबरें आये दिन समाचारों की सुर्खियां बनती है. हर दिन हाथी जंगली इलाके के गांवों में पहुंचकर जन धन को नुकसान पहुंचा रहे हैं. गांवों में जंगली हाथियों का झुंड पहुंचकर घरों को तहस नहस कर रहे हैं और फसलों के साथ साथ घरों में रखे गये अन्न को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कई स्थानों पर हाथियों द्वारा कुचले जाने से मनुष्यों की मृत्यू की खबरें छत्तीसगढ़ में आम बात हो गई है. इस समस्या से निजात दिलाने के लिये छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय,जो स्वयं हाथी प्रभावित इलाके से आते हैं बेहद संवेदनशील हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद विष्णुदेव साय ने हाथी की समस्या से आम जन को निजात दिलाने के लिये लगातार पहल कर रहें हैं और उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों को इस समस्या के समाधान के लिये सार्थक प्रयास करने के निर्देश दिये हैं.

छत्तीसगढ़ के जंगलों से हाथियों का रिश्ता बहुत पुराना है. हजारों कही-सुनी कहानियों और ऐतिहासिक प्रमाणों के अलावा बिलासपुर जिले के ब्रिटिश गजेटियर भी इस बात की मुद्रित गवाही देता है कि औरंगजेब के समय तक मुगल शासक बिलासपुर क्षेत्र से हाथियों की खरीददारी किया करते थे. इसके अलावा तुमान, पाली, मल्हार जैसे ऐतिहासिक महत्व के स्थानों की खुदाई
में ऐसे सिक्के भी मिले हैं, जिसमें प्रतीक के रूप में हाथियों का अंकन है.. इतिहास में भी इस बात का जिक्र मिलता है कि खिलजी वंश से लेकर मुगल शासन काल तक हाथियों की आपूर्ति छत्तीसगढ़ से ही की जाती थी… यहां के हाथी को ही प्रशिक्षित करके सेना में भेजा जाता था.. इस बात का भी पुख्ता प्रमाण है कि 1930 के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में भी रसद लेकर यहां से हाथी गए थे.

छत्तीसगढ़ के जंगल हाथियों के लिए पसंद का रहवास शुरू से ही रहा है, मगर हाथियों का ऐसा आतंक और हाथी मानव द्वंद्व ऐसा पहले कभी नहीं रहा जैसा कि इन दिनों दिखाई दे जाता है..मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मार्गदर्शन में राज्य सरकार द्वारा मानव हाथी द्वंद को रोकने लगातार जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.. सरगुजा से ‘‘हमर हाथी हमर गोठ’’ रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण कर हाथियों के विचरण की जानकारी स्थानीय लोगों को दी जा रही है..मुख्यमंत्री साय के निर्देश पर राज्य सरकार द्वारा स्थानीय जनों को अपनी ओर हाथियों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने गज यात्रा अभियान चलाया जा रहा है. साथ ही ‘‘गज संकेत एवं सजग एप’’ के माध्यम से भी हाथी विचरण की जानकारी दी जा रही है.

छत्तीसगढ़ में 1950 में तिमोर पिंगला में हाथी आखरी बार देखा गया था उसके बाद हाथी दिखे 1980 में उसके पीछे का कारण ओपन कास्ट माइनिंग की वजह से झारखंड, बिहार और उडीसा में बड़े पैमाने पर जंगलों का कट जाना बताया जाता है..सच तो ये है कि यदि हाथी छत्तीसगढ़ को अपने रहने के लिए उपयुक्त स्थान पाते हैं तो ये छ.ग. का सौभाग्य है.. अजब संयोग है कि रहवास के लिए स्थल चयन को लेकर हाथी और मानव में बहुत समानता पाई जाती है.. जिस जगह को मानव अपने रहने के काबिल पाता है ठीक वही जगह हाथियों को अपने लिए जचता है. जल की उपलब्धता वाला घना हरा जंगल यदि मनुष्य को रास आता है तो हाथियों की भी यही पहली पसंद है.. पहाड़ी की तराई यदि मनुष्यों को पसंद है तो हाथी भी रह जाने के लिए ऐसी ही जगहों की खोज में होता है…आंख बंद कर के इस बात की घोषणा की जा सकती है कि वो स्थान प्राकृतिक संसाधनों से सुसज्जित होगा, जहाॅ हाथी जा बसते हैं.

हाथी अपने रहने के लिए उन्हीं स्थानों का चयन करता है, जहाॅ हरियाली बिखरी पड़ी हो क्योंकि यही हरियाली हाथियों के उदरपर्ति में भी सहयोगी होता है..संयोग से ऐसी ही हरियाली मनुष्य भी अपने लिए ढूंढता है.. इंसान और हाथियों के बीच की इसी समानता ने एक हकूक की लड़ाई को भी जन्म दे दिया है.. मानव हाथी द्वंद्व को रोकने की जो सफल कोशिश छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने की है वैसा पहले नहीं हो पाया था. उनकी सरकार आने के बाद ऐसे हादसों में बहुत कमी देखी गई है.

तमोर पिंगला अभयारण्य के पास स्थित घुई वन रेंज के हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग की प्रतिबद्धता का उदाहरण है.. हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला 4.8 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है जो हाथियों की विशेष देखभाल और प्रबंधन के लिए समर्पित है.. यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र
है..मानव हाथी द्वंद्व के पीछे और भी बहुत सी वजहें हैं ,जो काम कर रही है.. जैसे वनों का घटता क्षेत्रफल, पेड़ पौधों और घांस का लगातार कम होना, फलदार वृक्षों की कमी, जंगली फलों का मानव के द्वारा दोहन, वनों में लगती आग वगैरह… शाकाहारी हाथियों और मनुष्य के खान पान की एकरूपता के अलावा हाथी भारतीय इंसानों से धार्मिक आस्थाओं के चलते भी जुड़ा हुआ है. स्वभाव से हाथी विशालकाय, शक्तिशाली, सामाजिक और शांति प्रिय प्राणी होता है, लेकिन अपनी शांति भंग करने वालो को वह बक्शता भी नहीं है.. इंसानों के द्वारा खेदा किए जाने वाला हाथी का एक छोटा सा बच्चा अपने यौवन काल में भी उस दर्द को भूला हुआ नहीं होता और जब भी पहला मौका मिलता है वो इंसानों को कुचलकर इसका बदला ले लेता है.. राज्य की साय सरकार पूरी दानिशमंदी के साथ इस समस्या का समाधान खोज रही है.

वनों से आच्छादित है राज्य का 44 प्रतिशत क्षेत्र

हाइलैंड सेंट्रल इंडिया जैसी किताबों में तो इस बात का भी ज़िक्र है कि शताब्दी के अंत तक छत्तीसगढ़ में हाथी पाए जाते थे लेकिन बाद में भूकंप की वजह से बड़ी तादात में हाथियों की मृत्यु हुई, मगर एक बार फिर से राज्य में हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है… दरअसल राज्य का 44 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छादित है, जिसमें हाथियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वातावरण उपयुक्त है,जिसके कारण हाथियों की संख्या में वृद्धि हो रही है… राज्य में वनों के संवर्धन के लिए ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’ अभियान के तहत वृक्षारोपण किया जा रहा है तथा विभाग द्वारा 3 करोड़ 80 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया था.. महतारी वंदन योजना के तहत लाभान्वित महिलाओं को भी इस अभियान से जोड़ा गया है.

जान माल की हानि में लगातार आ रही कमी

मुख्यमंत्री के निर्देश पर हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला का संचालन एलिफेंट रिजर्व सरगुजा के द्वारा किया जा रहा है.. फ़िलहाल इस केंद्र में तीन गज शावकों को मिला कर कुल 9 हाथी निवासरत हैं. वर्ष 2018 में अपनी स्थापना के बाद से यह हाथी राहत और पुनर्वास केन्द्र विष्णुदेव साय सरकार की निगहबानी में और बेहतर तरीके से काम करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य में बाघों, तेंदुआ और जंगली हाथियों सहित वन्यजीवों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. केन्द्र के प्रशिक्षित कुमकी हाथी मानव-वन्यजीवन संघर्षों को लगातार कम कर रहा हैं,.. स्थानीय समुदायों की जान माल की हानि में लगातार कमी आ रही है.. आक्रामक जंगली हाथियों को जंगल में वापस खदेड़ने के साथ ही साथ वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान को जंगली हाथियों में रेडियो-कॉलर लगाने में सहयोग देता है कुमकी हाथी…मनेंद्रगढ़ वन प्रभाग के जनकपुर रेंज से एक तेंदुए और सूरजपुर वन प्रभाग के ओढगी रेंज से घायल बाघिन को भी रेस्क्यू करने में कुमकी हाथियों ने अहम भूमिका निभाई.

हाथियों की उचित देखभाल कर रही सरकार

अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन संरक्षक एलिफेंट रिजर्व सरगुजा ने बताया है कि सीएम विष्णुदेव साय के निर्देश पर इस केंद्र में हाथियों की सर्वोत्तम देखभाल सुनिश्चित की जा रही है., साथ ही सुविधाओं में और सुधार के लिए प्रयास किए जा रहे हैं… केंद्र में हाथियों की देखभाल और आवास प्रबंधन उच्चतम पशु चिकित्सा मानकों के अनुसार किया जा रहा है. यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि हाथियों की देखभाल उच्च मानकों के अनुसार की जा रही है.. सभी हाथियों का नियमित रूप से टीकाकरण, परजीवी-रोधी उपचार और विशेष पोषण आहार दिया जा रहा है, ताकि उन्हें एक सुरक्षित और रोग-मुक्त वातावरण में रखा जा सके..महावतों, चारा काटने वालों और पशु चिकित्सकों द्वारा की जाने वाली नियमित देखभाल, दैनिक रूप से उनकी जंगल की सैर ये तमाम बातें यह सुनिश्चित करती है कि हाथी स्वस्थ रहें और अपने प्राकृतिक व्यवहार को बनाए रखें और उनके साथ रहने वाले मानव भी सुरक्षित रहें.

ऐसे ही सूरजपुर जिले का सबसे बड़ा वन्य जीवन अभयारण्य “तमोर पिंगला” जो तमोर हिल्स की गोद में स्थित है इसके प्रबंधन में भी साय सरकार के आने के बाद काफी सुधार आया है.. ये अभ्यारण्य 608.52 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल पर बनाया गया है, जो वाड्रफनगर क्षेत्र उत्तरी सरगुजा वनमंडल में स्थित है. 1978 में वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था. 2011 में इसे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सरगुजा जशपुर हाथी रिजर्व के एक हिस्से के रूप में अधिसूचित किया गया था… इस अभयारण्य के भीतर सात राजस्व गाँव हैं, जिनके नाम खोंड , इंजानी, अरचोका, दुर्गैन, केसर, छतौली और धौलपुर हैं… तमोर हिल्स, जिसका क्षेत्रफल 250 किमी 2 है ..सरगुजा जशपुर हाथी रिजर्व वन प्रभाग के तमोर, खोंड और पिंगला रेंज के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में साल और बांस के जंगल हैं.

छत्तीसगढ़ में हैं करीब 350 हाथी, इनमें 80 हाथी एलिफेंट रिजर्व में

वन्य जीवन अभयारण्य “तमोर पिंगला” में मुख्यत: शेर तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वर्किडियर, चिंकारा, गौर, जंगली सुअर, भालू, सोनकुत्ता, बंदर, खरगोश, गिंलहरी, सियार, नेवला, लोमडी, तीतर, बटेर, चमगादड, आदि मिलते हैं.. अभयारण्य “तमोर पिंगला” के उत्तरी में सीमा मोरन नदी है, पूर्वी सीमा बोंगा नाला है, और पश्चिमी सीमा रिहंद नदी है… वैसे तो छत्तीसगढ़ में लगभग 350 हाथी हैं, जिनमें से 80 हाथी अकेले तमोर पिंगला एलिफेंट रिजर्व में है.. जाहिर सी बात है जब हाथियों की संख्या ज्यादा है तो देश के शातिर शिकारियों की निगाहें भी उनके ऊपर होगी… इसी के मद्देनजर इसमें आने वाले पहाड़ी रास्तों पर बैरियर हट बनाने का निर्णय लिया है ,ताकि अवैध आवागमन रोका जा सके.. वायरलेस सिस्टम का इंतजाम भी कर रखा है ताकि हर गतिविधि की जानकारी तुरंत कंट्रोल रूम को भेजी जा सके..राज्य के विष्णु देव साय सरकार ना सिर्फ़ हाथी बल्कि तमाम वन्यजीवों के संरक्षण के लिए समर्पित होकर काम कर रही है..बहुत ही जल्द छत्तीसगढ़ अपने वन्यजीवों के लिए वैश्विक पटल पर प्राथमिकता के साथ जाना जाएगा और सरकार द्वारा किये गये प्रयासों के फलस्वरुप मानव-हाथी द्वंद जैसी जटिल समस्या से निजात मिलेगी.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest News

रायपुर, छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग और बिलासपुर संभाग सहित ज्यादातर उत्तरी इलाका पिछले दो दशक से मानव-हाथी द्वंद की समस्या से ग्रसित है. यहां जंगली हाथियों के द्वारा किये जा रहे उत्पात की खबरें आये दिन समाचारों की सुर्खियां बनती है. हर दिन हाथी जंगली इलाके के गांवों में पहुंचकर जन धन को नुकसान पहुंचा रहे हैं. गांवों में जंगली हाथियों का झुंड पहुंचकर घरों को तहस नहस कर रहे हैं और फसलों के साथ साथ घरों में रखे गये अन्न को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कई स्थानों पर हाथियों द्वारा कुचले जाने से मनुष्यों की मृत्यू की खबरें छत्तीसगढ़ में आम बात हो गई है. इस समस्या से निजात दिलाने के लिये छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय,जो स्वयं हाथी प्रभावित इलाके से आते हैं बेहद संवेदनशील हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद विष्णुदेव साय ने हाथी की समस्या से आम जन को निजात दिलाने के लिये लगातार पहल कर रहें हैं और उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों को इस समस्या के समाधान के लिये सार्थक प्रयास करने के निर्देश दिये हैं. छत्तीसगढ़ के जंगलों से हाथियों का रिश्ता बहुत पुराना है. हजारों कही-सुनी कहानियों और ऐतिहासिक प्रमाणों के अलावा बिलासपुर जिले के ब्रिटिश गजेटियर भी इस बात की मुद्रित गवाही देता है कि औरंगजेब के समय तक मुगल शासक बिलासपुर क्षेत्र से हाथियों की खरीददारी किया करते थे. इसके अलावा तुमान, पाली, मल्हार जैसे ऐतिहासिक महत्व के स्थानों की खुदाई में ऐसे सिक्के भी मिले हैं, जिसमें प्रतीक के रूप में हाथियों का अंकन है.. इतिहास में भी इस बात का जिक्र मिलता है कि खिलजी वंश से लेकर मुगल शासन काल तक हाथियों की आपूर्ति छत्तीसगढ़ से ही की जाती थी… यहां के हाथी को ही प्रशिक्षित करके सेना में भेजा जाता था.. इस बात का भी पुख्ता प्रमाण है कि 1930 के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में भी रसद लेकर यहां से हाथी गए थे. छत्तीसगढ़ के जंगल हाथियों के लिए पसंद का रहवास शुरू से ही रहा है, मगर हाथियों का ऐसा आतंक और हाथी मानव द्वंद्व ऐसा पहले कभी नहीं रहा जैसा कि इन दिनों दिखाई दे जाता है..मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मार्गदर्शन में राज्य सरकार द्वारा मानव हाथी द्वंद को रोकने लगातार जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.. सरगुजा से ‘‘हमर हाथी हमर गोठ’’ रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण कर हाथियों के विचरण की जानकारी स्थानीय लोगों को दी जा रही है..मुख्यमंत्री साय के निर्देश पर राज्य सरकार द्वारा स्थानीय जनों को अपनी ओर हाथियों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने गज यात्रा अभियान चलाया जा रहा है. साथ ही ‘‘गज संकेत एवं सजग एप’’ के माध्यम से भी हाथी विचरण की जानकारी दी जा रही है. छत्तीसगढ़ में 1950 में तिमोर पिंगला में हाथी आखरी बार देखा गया था उसके बाद हाथी दिखे 1980 में उसके पीछे का कारण ओपन कास्ट माइनिंग की वजह से झारखंड, बिहार और उडीसा में बड़े पैमाने पर जंगलों का कट जाना बताया जाता है..सच तो ये है कि यदि हाथी छत्तीसगढ़ को अपने रहने के लिए उपयुक्त स्थान पाते हैं तो ये छ.ग. का सौभाग्य है.. अजब संयोग है कि रहवास के लिए स्थल चयन को लेकर हाथी और मानव में बहुत समानता पाई जाती है.. जिस जगह को मानव अपने रहने के काबिल पाता है ठीक वही जगह हाथियों को अपने लिए जचता है. जल की उपलब्धता वाला घना हरा जंगल यदि मनुष्य को रास आता है तो हाथियों की भी यही पहली पसंद है.. पहाड़ी की तराई यदि मनुष्यों को पसंद है तो हाथी भी रह जाने के लिए ऐसी ही जगहों की खोज में होता है…आंख बंद कर के इस बात की घोषणा की जा सकती है कि वो स्थान प्राकृतिक संसाधनों से सुसज्जित होगा, जहाॅ हाथी जा बसते हैं. हाथी अपने रहने के लिए उन्हीं स्थानों का चयन करता है, जहाॅ हरियाली बिखरी पड़ी हो क्योंकि यही हरियाली हाथियों के उदरपर्ति में भी सहयोगी होता है..संयोग से ऐसी ही हरियाली मनुष्य भी अपने लिए ढूंढता है.. इंसान और हाथियों के बीच की इसी समानता ने एक हकूक की लड़ाई को भी जन्म दे दिया है.. मानव हाथी द्वंद्व को रोकने की जो सफल कोशिश छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने की है वैसा पहले नहीं हो पाया था. उनकी सरकार आने के बाद ऐसे हादसों में बहुत कमी देखी गई है. तमोर पिंगला अभयारण्य के पास स्थित घुई वन रेंज के हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग की प्रतिबद्धता का उदाहरण है.. हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला 4.8 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है जो हाथियों की विशेष देखभाल और प्रबंधन के लिए समर्पित है.. यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र है..मानव हाथी द्वंद्व के पीछे और भी बहुत सी वजहें हैं ,जो काम कर रही है.. जैसे वनों का घटता क्षेत्रफल, पेड़ पौधों और घांस का लगातार कम होना, फलदार वृक्षों की कमी, जंगली फलों का मानव के द्वारा दोहन, वनों में लगती आग वगैरह… शाकाहारी हाथियों और मनुष्य के खान पान की एकरूपता के अलावा हाथी भारतीय इंसानों से धार्मिक आस्थाओं के चलते भी जुड़ा हुआ है. स्वभाव से हाथी विशालकाय, शक्तिशाली, सामाजिक और शांति प्रिय प्राणी होता है, लेकिन अपनी शांति भंग करने वालो को वह बक्शता भी नहीं है.. इंसानों के द्वारा खेदा किए जाने वाला हाथी का एक छोटा सा बच्चा अपने यौवन काल में भी उस दर्द को भूला हुआ नहीं होता और जब भी पहला मौका मिलता है वो इंसानों को कुचलकर इसका बदला ले लेता है.. राज्य की साय सरकार पूरी दानिशमंदी के साथ इस समस्या का समाधान खोज रही है.

वनों से आच्छादित है राज्य का 44 प्रतिशत क्षेत्र

हाइलैंड सेंट्रल इंडिया जैसी किताबों में तो इस बात का भी ज़िक्र है कि शताब्दी के अंत तक छत्तीसगढ़ में हाथी पाए जाते थे लेकिन बाद में भूकंप की वजह से बड़ी तादात में हाथियों की मृत्यु हुई, मगर एक बार फिर से राज्य में हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है… दरअसल राज्य का 44 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छादित है, जिसमें हाथियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वातावरण उपयुक्त है,जिसके कारण हाथियों की संख्या में वृद्धि हो रही है… राज्य में वनों के संवर्धन के लिए ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’ अभियान के तहत वृक्षारोपण किया जा रहा है तथा विभाग द्वारा 3 करोड़ 80 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया था.. महतारी वंदन योजना के तहत लाभान्वित महिलाओं को भी इस अभियान से जोड़ा गया है.

जान माल की हानि में लगातार आ रही कमी

मुख्यमंत्री के निर्देश पर हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला का संचालन एलिफेंट रिजर्व सरगुजा के द्वारा किया जा रहा है.. फ़िलहाल इस केंद्र में तीन गज शावकों को मिला कर कुल 9 हाथी निवासरत हैं. वर्ष 2018 में अपनी स्थापना के बाद से यह हाथी राहत और पुनर्वास केन्द्र विष्णुदेव साय सरकार की निगहबानी में और बेहतर तरीके से काम करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य में बाघों, तेंदुआ और जंगली हाथियों सहित वन्यजीवों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. केन्द्र के प्रशिक्षित कुमकी हाथी मानव-वन्यजीवन संघर्षों को लगातार कम कर रहा हैं,.. स्थानीय समुदायों की जान माल की हानि में लगातार कमी आ रही है.. आक्रामक जंगली हाथियों को जंगल में वापस खदेड़ने के साथ ही साथ वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान को जंगली हाथियों में रेडियो-कॉलर लगाने में सहयोग देता है कुमकी हाथी…मनेंद्रगढ़ वन प्रभाग के जनकपुर रेंज से एक तेंदुए और सूरजपुर वन प्रभाग के ओढगी रेंज से घायल बाघिन को भी रेस्क्यू करने में कुमकी हाथियों ने अहम भूमिका निभाई.

हाथियों की उचित देखभाल कर रही सरकार

अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन संरक्षक एलिफेंट रिजर्व सरगुजा ने बताया है कि सीएम विष्णुदेव साय के निर्देश पर इस केंद्र में हाथियों की सर्वोत्तम देखभाल सुनिश्चित की जा रही है., साथ ही सुविधाओं में और सुधार के लिए प्रयास किए जा रहे हैं… केंद्र में हाथियों की देखभाल और आवास प्रबंधन उच्चतम पशु चिकित्सा मानकों के अनुसार किया जा रहा है. यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि हाथियों की देखभाल उच्च मानकों के अनुसार की जा रही है.. सभी हाथियों का नियमित रूप से टीकाकरण, परजीवी-रोधी उपचार और विशेष पोषण आहार दिया जा रहा है, ताकि उन्हें एक सुरक्षित और रोग-मुक्त वातावरण में रखा जा सके..महावतों, चारा काटने वालों और पशु चिकित्सकों द्वारा की जाने वाली नियमित देखभाल, दैनिक रूप से उनकी जंगल की सैर ये तमाम बातें यह सुनिश्चित करती है कि हाथी स्वस्थ रहें और अपने प्राकृतिक व्यवहार को बनाए रखें और उनके साथ रहने वाले मानव भी सुरक्षित रहें. ऐसे ही सूरजपुर जिले का सबसे बड़ा वन्य जीवन अभयारण्य “तमोर पिंगला” जो तमोर हिल्स की गोद में स्थित है इसके प्रबंधन में भी साय सरकार के आने के बाद काफी सुधार आया है.. ये अभ्यारण्य 608.52 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल पर बनाया गया है, जो वाड्रफनगर क्षेत्र उत्तरी सरगुजा वनमंडल में स्थित है. 1978 में वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था. 2011 में इसे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सरगुजा जशपुर हाथी रिजर्व के एक हिस्से के रूप में अधिसूचित किया गया था… इस अभयारण्य के भीतर सात राजस्व गाँव हैं, जिनके नाम खोंड , इंजानी, अरचोका, दुर्गैन, केसर, छतौली और धौलपुर हैं… तमोर हिल्स, जिसका क्षेत्रफल 250 किमी 2 है ..सरगुजा जशपुर हाथी रिजर्व वन प्रभाग के तमोर, खोंड और पिंगला रेंज के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में साल और बांस के जंगल हैं.

छत्तीसगढ़ में हैं करीब 350 हाथी, इनमें 80 हाथी एलिफेंट रिजर्व में

वन्य जीवन अभयारण्य “तमोर पिंगला” में मुख्यत: शेर तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वर्किडियर, चिंकारा, गौर, जंगली सुअर, भालू, सोनकुत्ता, बंदर, खरगोश, गिंलहरी, सियार, नेवला, लोमडी, तीतर, बटेर, चमगादड, आदि मिलते हैं.. अभयारण्य “तमोर पिंगला” के उत्तरी में सीमा मोरन नदी है, पूर्वी सीमा बोंगा नाला है, और पश्चिमी सीमा रिहंद नदी है… वैसे तो छत्तीसगढ़ में लगभग 350 हाथी हैं, जिनमें से 80 हाथी अकेले तमोर पिंगला एलिफेंट रिजर्व में है.. जाहिर सी बात है जब हाथियों की संख्या ज्यादा है तो देश के शातिर शिकारियों की निगाहें भी उनके ऊपर होगी… इसी के मद्देनजर इसमें आने वाले पहाड़ी रास्तों पर बैरियर हट बनाने का निर्णय लिया है ,ताकि अवैध आवागमन रोका जा सके.. वायरलेस सिस्टम का इंतजाम भी कर रखा है ताकि हर गतिविधि की जानकारी तुरंत कंट्रोल रूम को भेजी जा सके..राज्य के विष्णु देव साय सरकार ना सिर्फ़ हाथी बल्कि तमाम वन्यजीवों के संरक्षण के लिए समर्पित होकर काम कर रही है..बहुत ही जल्द छत्तीसगढ़ अपने वन्यजीवों के लिए वैश्विक पटल पर प्राथमिकता के साथ जाना जाएगा और सरकार द्वारा किये गये प्रयासों के फलस्वरुप मानव-हाथी द्वंद जैसी जटिल समस्या से निजात मिलेगी.
error: Content is protected !!