छत्तीसगढअकलतराबारूद के ढ़ेर पर नगर, प्रशासन बेखबर, खानापूर्ति तो बनता है...

बारूद के ढ़ेर पर नगर, प्रशासन बेखबर, खानापूर्ति तो बनता है…

वासु सोनी चांपा। दीवाली खुशियों का त्योहार है लेकिन पटाखों की गूंज कुछ अलग ही बयां करती है। जी हां आप सही समझ रहे है! पटाखे कहने को तो साधारण सा शब्द है लेकिन अगर कहीं धमाका हो तो एरिया ही दहल जाता है। बिलासपुर जिले के तोरवा क्षेत्र में एक ऐसा ही धमाका हुआ था। जिसमें लाखों के पटाखे जो करोड़ों बनते स्वाहा हो गए। लेकिन आखिर इतने बड़े धमाकों की जांच आज भी कही धूल खा रही है। उसी तर्ज में चांपा नगर में भी पटाखे ही पटाखे हैं लेकिन इसकी जांच कहां तक हुई इसकी जानकारी किसी को नहीं। हां ये जरूर कह सकते है कि दिवाली है तो पटाखे फोड़ना स्वाभाविक है। लेकिन शहर में इतने बड़े पैमाने पर बारूद और उससे निर्मित पटाखे रखे हैं कि जरा सी चिंगारी पूरे शहर को ले डूबेगी।

चांपा के गली मोहल्ले सहित कई स्थानों में पटाखे सामने कुछ और अंदर कुछ और ही हकीकत बयां करता हैं लेकिन जांच करे कौन? ये सवाल लाजिमी है। भालेराव मैदान चांपा में लगभग 50 से भी अधिक बारूद रूपी पटाखे से सुसज्जित पंडाल लगाए गए है। जहां हजारों के पटाखे करोड़ों में तब्दील किया जा रहा है लेकिन प्रशासनिक अमला हमेशा की तरह हाथ पे हाथ धरे बैठे है या फिर इस कहावत को चरितार्थ भी करते है “जहां जहां उधो दास, तिहां तिहां माधो दास। जिले के अधिकारी भी राउंड पे राउंड लेकिन करवाई ना के बराबर, क्योंकि दिवाली है मिठाई तो बनती है। लेकिन चांपा नगर में बिक रहे पटाखे के बारूद को अगर मिलाया जाए तो संभवतः चांपा नगर जैसे कई नगर तबाह किए जा सकते है। फिलहाल किसी को कोई मतलब नहीं चाहे कितना भी बारूद नगर में आ जाए प्रशासनिक अमला सिर्फ देखने जायेगा दिखाने नहीं।

वहीं दीवाली में पटाखा बाजार को सुरक्षित रखने का दावा करने वाले प्रशासनों अधिकारियों की पोल तब खुल गई जब मौके पर पहुंचे बिहान खबर की टीम ने देखा नगर पालिका का पानी टंकी तो रखा है लेकिन वह भी बिल्कुल खाली है। कुछ लोगों ने तो यह भी बताया कि फायर बिग्रेड भी शाम को पहुंचती है जबकि भरी दोपहर में चुभने वाली गर्मी पड़ रही है। फिर भी प्रशासन के नुमाइंदे अपनी ऐसी हरकतों के बाद भी चैन की नींद सोते नजर आते है।

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वासु सोनी चांपा। दीवाली खुशियों का त्योहार है लेकिन पटाखों की गूंज कुछ अलग ही बयां करती है। जी हां आप सही समझ रहे है! पटाखे कहने को तो साधारण सा शब्द है लेकिन अगर कहीं धमाका हो तो एरिया ही दहल जाता है। बिलासपुर जिले के तोरवा क्षेत्र में एक ऐसा ही धमाका हुआ था। जिसमें लाखों के पटाखे जो करोड़ों बनते स्वाहा हो गए। लेकिन आखिर इतने बड़े धमाकों की जांच आज भी कही धूल खा रही है। उसी तर्ज में चांपा नगर में भी पटाखे ही पटाखे हैं लेकिन इसकी जांच कहां तक हुई इसकी जानकारी किसी को नहीं। हां ये जरूर कह सकते है कि दिवाली है तो पटाखे फोड़ना स्वाभाविक है। लेकिन शहर में इतने बड़े पैमाने पर बारूद और उससे निर्मित पटाखे रखे हैं कि जरा सी चिंगारी पूरे शहर को ले डूबेगी। चांपा के गली मोहल्ले सहित कई स्थानों में पटाखे सामने कुछ और अंदर कुछ और ही हकीकत बयां करता हैं लेकिन जांच करे कौन? ये सवाल लाजिमी है। भालेराव मैदान चांपा में लगभग 50 से भी अधिक बारूद रूपी पटाखे से सुसज्जित पंडाल लगाए गए है। जहां हजारों के पटाखे करोड़ों में तब्दील किया जा रहा है लेकिन प्रशासनिक अमला हमेशा की तरह हाथ पे हाथ धरे बैठे है या फिर इस कहावत को चरितार्थ भी करते है "जहां जहां उधो दास, तिहां तिहां माधो दास। जिले के अधिकारी भी राउंड पे राउंड लेकिन करवाई ना के बराबर, क्योंकि दिवाली है मिठाई तो बनती है। लेकिन चांपा नगर में बिक रहे पटाखे के बारूद को अगर मिलाया जाए तो संभवतः चांपा नगर जैसे कई नगर तबाह किए जा सकते है। फिलहाल किसी को कोई मतलब नहीं चाहे कितना भी बारूद नगर में आ जाए प्रशासनिक अमला सिर्फ देखने जायेगा दिखाने नहीं। वहीं दीवाली में पटाखा बाजार को सुरक्षित रखने का दावा करने वाले प्रशासनों अधिकारियों की पोल तब खुल गई जब मौके पर पहुंचे बिहान खबर की टीम ने देखा नगर पालिका का पानी टंकी तो रखा है लेकिन वह भी बिल्कुल खाली है। कुछ लोगों ने तो यह भी बताया कि फायर बिग्रेड भी शाम को पहुंचती है जबकि भरी दोपहर में चुभने वाली गर्मी पड़ रही है। फिर भी प्रशासन के नुमाइंदे अपनी ऐसी हरकतों के बाद भी चैन की नींद सोते नजर आते है।
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