वासु सोनी चांपा। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के 8 दिन बाद भगवान वापस अपने धाम लौटते है। वापसी के दिन भी भगवान अपने भक्तो को भक्त के ही स्थान में जाकर दर्शन देते हैं यही परंपरा कई वर्षों से अनवरत चलती आ रही है। 8 दिन बाद भगवान अपने धाम को वापस लौटते हुए भी भक्तो को दर्शन देते है। चांपा में भी भगवान जगन्नाथ की यात्रा मठ मंदिर से निकल कर अपने मौसी के यहां पहुंचती है। जहां से 8 दिन बाद महाप्रभु जगन्नाथ वापस अपने धाम लौटते हैं।
मापलुआ से लगता है भोग
चांपा स्थित जगन्नाथ मठ मंदिर में रायगढ़िया होटल का बना मालपुआ का प्रसाद भगवान महाप्रभु जगन्नाथ को भोग लगाया जाता है। रायगढिया होटल के संचालक मंगतूराम शर्मा जी के बड़े बेटे कुलदीप ने बताया की हमारे दादा राजस्थान के सीकर निवासी गजानंद जी शर्मा राधेकिशन जी शर्मा रायगढ़ से होते हुए चांपा पहुंचे थे। जहां से उन्होंने रथयात्रा के दिन राजस्थानी व्यंजन मालपुआ बनाने की शुरुआत की। प्रत्येक रथयात्रा के दिन मालपुआ प्रसाद बनाकर पहला भोग जगन्नाथ मठ मंदिर में लगाया जाता है। उसके बाद ही अन्य लोगो के लिए बनाकर विक्रय किया जाता है। मालपुआ बनाने की शुरुआत लगभग 1909 ईसवी में हुआ। जहां जगन्नाथ मठ में आज भी मंगला आरती में यहां से भोग लगता है। द्विज और दशमी के दिन भी भोग लगाया जाता है।
रायगढिया होटल का मालपुआ है प्रसिद्ध
कई वर्षो से रायगढिया होटल के सदस्य चांपा नगर सहित जांजगीर चांपा जिले के लोगों के स्वाद से भरपूर मालपुआ का निर्माण करते है। जिसके लिए उड़ीसा, राजस्थान सहित अन्य राज्यों से कारीगर बुलाकर मालपुआ और मिष्ठान बनाया जाता है।
अन्य जगहों में नही मिलता मालपुआ
छत्तीसगढ़ में जांजगीर चांपा जिले के चांपा नगर में ही मालपुआ बनाया जाता है। यही से सीखकर अन्य कुछ जगहों में मलापुआ बनाए जाते है। फिर भी मालपुआ की मिठास सिर्फ चांपा नगर आने के बाद ही पता चलती है। आसपास के लोग सहित जिले के लोग भी जगन्नाथ रथयात्रा के दिन मालपुआ लेने चांपा ही आते है।
मालपुआ लेने लगती है लाइन
रायगढिया होटल में मालपुआ लेने के लिए लाइन लगती है। यहां के स्वाद के चलते लोग लाइन लगाकर मालपुआ लेने इंतजार करते है।