अन्य खबरेंखदान से निकलने वाला गंदा पानी झुमका जलाशय को कर रहा प्रदूषित

खदान से निकलने वाला गंदा पानी झुमका जलाशय को कर रहा प्रदूषित

बैकुंठपुर। कोयला खदान से निकलने वाले गंदे पानी को झुमका जलाशय में मिलने से रोकने के लिए पर्यावरण विभाग की शर्तों पर चरचा कॉलरी में करीब 10 करोड़ रुपए की लागत से 8.64 एमएलडी क्षमता का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट एसईसीएल ने बनवाया था, ताकि खदान के दूषित पानी को साफ कर बांध में मिलने से रोका जा सके, लेकिन साफ पानी को खदान में मशीन समेत अन्य कार्यों के लिए उपयोग में लेने के बाद इसे बाहर बहा दिया जाता है, जिससे गंदा पानी बरसाती नालों से बहकर झुमका जलाशय में पहुंच रहा है।

जबकि पर्यावरण शतों के मुताबिक एसईसीएल को चरचा अंडर ग्राउंड माइंस से निकलने वाले पानी को फिल्टर करके नाला में छोड़ना था, क्योंकि यही पानी नाला में बहकर जिला मुख्यालय सागरपुर स्थित झुमका डेम में मिल जाता है। शिवपुर-चरचा के खदान से निकलने वाला गंदा पानी अब भी नाला में बहकर सीधे झुमका डेम में मिल रहा है। इससे न सिर्फ जलीय जीव जीवन पर खतरा मंडरा रहा है बल्कि पानी दूषित होने के कारण पीने लायक भी नहीं रह गया है। झुमका के पानी की गुणवक्ता खराब होने की पुष्टि कोरिया पीएचई विभाग की लैब में जांच के दौरान हुआ है। जबकि एसईसीएल अफसरों का कहना है कि झुमका में खदान का पानी नहीं पहुंच रहा है, खदान से निकलने वाले गंदे पानी को एसईसीएल सीएचपी समेत खदान में मशीनी वर्क के लिए उपयोग में ला रही है। पहले खदान से निकलने वाले गंदे पानी को पहले कंपनी द्वारा सीधे बरसाती नाले में छोड़ दिया जाता था, लेकिन अब डेम का पानी प्रदूषित नहीं हो रहा है।

पर्यावरण शर्तों के तहत एसईसीएल ने एसटीपी का भी निर्माण करवाया है ताकि कॉलोनी व रहवासी क्षेत्र का गंदा पानी बरसाती नालों में न बहे, लेकिन यह भी अनुपयोगी साबित हो रहा है, बरसाती नालों में अब भी नालों का गंदा पानी बहाया जा रहा है, जो पानी आगे जाकर खदान के पानी के साथ जलाशय को प्रदूषित कर रहा है। मामले में एसईसीएल अफसरों का कहना है कि इसे ठीक किया जाएगा।

इधर चरचावासियों का कहना है कि फूलपुर के रास्ते एसईसीएल के खदानों से निकलने वाला पानी और गंदे नालों का पानी आगे बहकर बांध में मिल रहा है। पानी गंदा होने से न सिर्फ जलीय जीव जीवन पर खतरा मंडरा रहा था, बल्कि दूषित पानी से किसानों के फसलों को भी नुकसान हो सकता है। जबकि एसईसीएल का कहना है कि खदान के पानी उपयोग खदान में मशीनी वर्क में किया जा रहा है।

मामले में कलेक्टर कोरिया विनय कुमार लंगेह ने कहा कि एसईसीएल प्रबंधन से लगातार बात हो रही है, अंबिकापुर से आई पर्यावरण विभाग की टीम ने भी इसकी जांच की है। कुछ कमियां हैं जिन्हें दूर करने के लिए एसईसीएल को समय दिया गया है। खदान और निस्तार का पानी झुमका को प्रदूषित न करें इसे लेकर एसईसीएल के अधिकारियों को निर्देश दिये हैं।

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बैकुंठपुर। कोयला खदान से निकलने वाले गंदे पानी को झुमका जलाशय में मिलने से रोकने के लिए पर्यावरण विभाग की शर्तों पर चरचा कॉलरी में करीब 10 करोड़ रुपए की लागत से 8.64 एमएलडी क्षमता का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट एसईसीएल ने बनवाया था, ताकि खदान के दूषित पानी को साफ कर बांध में मिलने से रोका जा सके, लेकिन साफ पानी को खदान में मशीन समेत अन्य कार्यों के लिए उपयोग में लेने के बाद इसे बाहर बहा दिया जाता है, जिससे गंदा पानी बरसाती नालों से बहकर झुमका जलाशय में पहुंच रहा है। जबकि पर्यावरण शतों के मुताबिक एसईसीएल को चरचा अंडर ग्राउंड माइंस से निकलने वाले पानी को फिल्टर करके नाला में छोड़ना था, क्योंकि यही पानी नाला में बहकर जिला मुख्यालय सागरपुर स्थित झुमका डेम में मिल जाता है। शिवपुर-चरचा के खदान से निकलने वाला गंदा पानी अब भी नाला में बहकर सीधे झुमका डेम में मिल रहा है। इससे न सिर्फ जलीय जीव जीवन पर खतरा मंडरा रहा है बल्कि पानी दूषित होने के कारण पीने लायक भी नहीं रह गया है। झुमका के पानी की गुणवक्ता खराब होने की पुष्टि कोरिया पीएचई विभाग की लैब में जांच के दौरान हुआ है। जबकि एसईसीएल अफसरों का कहना है कि झुमका में खदान का पानी नहीं पहुंच रहा है, खदान से निकलने वाले गंदे पानी को एसईसीएल सीएचपी समेत खदान में मशीनी वर्क के लिए उपयोग में ला रही है। पहले खदान से निकलने वाले गंदे पानी को पहले कंपनी द्वारा सीधे बरसाती नाले में छोड़ दिया जाता था, लेकिन अब डेम का पानी प्रदूषित नहीं हो रहा है। पर्यावरण शर्तों के तहत एसईसीएल ने एसटीपी का भी निर्माण करवाया है ताकि कॉलोनी व रहवासी क्षेत्र का गंदा पानी बरसाती नालों में न बहे, लेकिन यह भी अनुपयोगी साबित हो रहा है, बरसाती नालों में अब भी नालों का गंदा पानी बहाया जा रहा है, जो पानी आगे जाकर खदान के पानी के साथ जलाशय को प्रदूषित कर रहा है। मामले में एसईसीएल अफसरों का कहना है कि इसे ठीक किया जाएगा। इधर चरचावासियों का कहना है कि फूलपुर के रास्ते एसईसीएल के खदानों से निकलने वाला पानी और गंदे नालों का पानी आगे बहकर बांध में मिल रहा है। पानी गंदा होने से न सिर्फ जलीय जीव जीवन पर खतरा मंडरा रहा था, बल्कि दूषित पानी से किसानों के फसलों को भी नुकसान हो सकता है। जबकि एसईसीएल का कहना है कि खदान के पानी उपयोग खदान में मशीनी वर्क में किया जा रहा है। मामले में कलेक्टर कोरिया विनय कुमार लंगेह ने कहा कि एसईसीएल प्रबंधन से लगातार बात हो रही है, अंबिकापुर से आई पर्यावरण विभाग की टीम ने भी इसकी जांच की है। कुछ कमियां हैं जिन्हें दूर करने के लिए एसईसीएल को समय दिया गया है। खदान और निस्तार का पानी झुमका को प्रदूषित न करें इसे लेकर एसईसीएल के अधिकारियों को निर्देश दिये हैं।
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