Uncategorizedरतनपुर की आदिशक्ति मां महामाया करती है सभी की मनोकामना पुरी

रतनपुर की आदिशक्ति मां महामाया करती है सभी की मनोकामना पुरी

बिलासपुर। बिलासपुर जंक्शन और जिला मुख्यालय से लगभग 22 कि.मी. की दूर आदिशक्ति मां महामाया की नगरी रतनपुर स्थित है। यह नगरी कलचुरी राजाओं की विख्यात राजधानी रही है। इस वंश के राजा रत्नदेव ने महामाया के निर्देश पर रतनपुर नगर बसाकर मां महामाया देवी की कृपा से दक्षिण कोसल पर निष्कंटक राज किया। उनके अधीन जितने राजा, ज़मींदार और मालगुज़ार रहे, सबने अपनी राजधानी में महामाया देवी की स्थापना की और उन्हें अपनी कुलदेवी मानकर उनकी अधीनता स्वीकार की। उनकी कृपा से अपने कुल-परिवार, राज्य में सुख शांति और वैभव की वृद्धि कर सके। पौराणिक काल से लेकर आज तक रतनपुर में महामाया देवी की सत्ता स्वीकार की जाती रही है। कहा जाता है कि एक बार राजा रत्नदेव भटकते हुए यहाँ के घनघोर वन में आए और सांझ होने के कारण एक पेड़ पर चढक़र रात्रि गुज़ारी। सोते हुए उन्होंने पेड़ के नीचे देवी महामाया की सभा लगी देखी। इसे महामाया का निर्देश मानकर उन्होंने यहाँ अपनी राजधानी बनाकर देवी की स्थापना की। यह देवी आज जन आस्था का केंद्र बनी हुई है। मंत्र शक्ति से परिपूर्ण दैवीय कण यहाँ के वायुमंडल में बिखरे हैं जो किसी भी उद्विग्न व्यक्ति को शांत करने के लिए पर्याप्त हैं। यहाँ के भग्नावशेष हैहयवंशी कलचुरी राजवंश की गाथा सुनाने के लिए पर्याप्त है। महामाया देवी और बूढ़ेश्वर महादेव की कृपा इस क्षेत्र के लिए रक्षा कवच के समान समझी जाती है। पंडित गोपालचंद्र ब्रह्मचारी भी यही गाते हैं –

रक्षको भैरवो याम्यां देवो भीषण शासन: तत्वार्थिभि:समासेव्य: पूर्वे बृद्धेश्वर: शिव:।।
नराणां ज्ञान जननी महामाया तु नैऋतै पुरतो भ्रातृ संयुक्तो राम सीता समन्वित:।।

आराधकों द्वारा देवी महामाया मंदिर ट्रस्ट बनाकर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया है। दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए धर्मशाला, यज्ञशाला, भोगशाला और अस्पताल आदि की व्यवस्था की गई है। नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ ” चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है…” का गायन करती चली आती है।

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बिलासपुर। बिलासपुर जंक्शन और जिला मुख्यालय से लगभग 22 कि.मी. की दूर आदिशक्ति मां महामाया की नगरी रतनपुर स्थित है। यह नगरी कलचुरी राजाओं की विख्यात राजधानी रही है। इस वंश के राजा रत्नदेव ने महामाया के निर्देश पर रतनपुर नगर बसाकर मां महामाया देवी की कृपा से दक्षिण कोसल पर निष्कंटक राज किया। उनके अधीन जितने राजा, ज़मींदार और मालगुज़ार रहे, सबने अपनी राजधानी में महामाया देवी की स्थापना की और उन्हें अपनी कुलदेवी मानकर उनकी अधीनता स्वीकार की। उनकी कृपा से अपने कुल-परिवार, राज्य में सुख शांति और वैभव की वृद्धि कर सके। पौराणिक काल से लेकर आज तक रतनपुर में महामाया देवी की सत्ता स्वीकार की जाती रही है। कहा जाता है कि एक बार राजा रत्नदेव भटकते हुए यहाँ के घनघोर वन में आए और सांझ होने के कारण एक पेड़ पर चढक़र रात्रि गुज़ारी। सोते हुए उन्होंने पेड़ के नीचे देवी महामाया की सभा लगी देखी। इसे महामाया का निर्देश मानकर उन्होंने यहाँ अपनी राजधानी बनाकर देवी की स्थापना की। यह देवी आज जन आस्था का केंद्र बनी हुई है। मंत्र शक्ति से परिपूर्ण दैवीय कण यहाँ के वायुमंडल में बिखरे हैं जो किसी भी उद्विग्न व्यक्ति को शांत करने के लिए पर्याप्त हैं। यहाँ के भग्नावशेष हैहयवंशी कलचुरी राजवंश की गाथा सुनाने के लिए पर्याप्त है। महामाया देवी और बूढ़ेश्वर महादेव की कृपा इस क्षेत्र के लिए रक्षा कवच के समान समझी जाती है। पंडित गोपालचंद्र ब्रह्मचारी भी यही गाते हैं -

रक्षको भैरवो याम्यां देवो भीषण शासन: तत्वार्थिभि:समासेव्य: पूर्वे बृद्धेश्वर: शिव:।। नराणां ज्ञान जननी महामाया तु नैऋतै पुरतो भ्रातृ संयुक्तो राम सीता समन्वित:।।

आराधकों द्वारा देवी महामाया मंदिर ट्रस्ट बनाकर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया है। दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए धर्मशाला, यज्ञशाला, भोगशाला और अस्पताल आदि की व्यवस्था की गई है। नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ '' चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है...'' का गायन करती चली आती है।
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