उमरेली। ऐसी कथा आती है कि जब गोकर्णजी भागवत सुना रहे थे तो एक बांस के खंभे में धुंधुकारी उतर गया और उसमें सात गठान थी। उस बांस के खंभे में एक-एक दिन कर सात गठान टूटती गई और धुंधुकारी मुक्त हो गया। भागवत सुनने की भावना जो धुंधुकारी के मन में थी वैसी भावना आप भी रखेंगे तो आप भी मुक्त हो जाएंगे। मुक्त होने का मतलब जीवन से मुक्त नहीं होना दुनियादारी से मुक्त होना है। जीवन में सात गठानें होती हैं काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर और अविद्या। एक-एक दिन एक-एक टूटती चली जाएंगी।
इस कथा के आगे एक प्रसंग बहुत सुंदर आ रहा है जैसे ही यह कथा पूरी हुई, सबको बड़ा आनंद हुआ। कथा पूरी होते-होते अचानक शुकदेवजी पधार गए। शुकदेवजी बहुत प्रसन्न हुए। शुकदेवजी को ऊंचे आसन पर बैठाया। जब सारे साधु-संत बैठ गए तो अचानक भगवान प्रकट हुए। भगवान श्रीहरि के साथ अर्जुन प्रकट हुए, प्रहलाद प्रकट हुए और सारे संत प्रकट हो गए। सबने मिलकर भागवत में कीर्तन किया। इसलिए भागवत में कीर्तन का महत्व है। भागवत में महात्म्य समाप्त होने जा रहा है और भागवत के महात्म्य को समाप्त करते-करते ग्रंथकार ने वक्ता और श्रोता के लक्षण बताए हैं। पहला लक्षण है विरक्त भाव। प्रत्येक नर-नारी को भागवत भाव से देखा जाए।
उपदेशकर्ता ब्राह्मण अर्थात ब्रह्मज्ञ होना चाहिए। वह धीर गंभीर और दृष्टांत कुशल होना चाहिए। वक्ता में धन-कीर्ति का मोह न हो। कथा सुनते समय कथा का ही चिंतन करें चिंताएं त्याग दें। भागवत की कथा का श्रवण जो प्रेम से करता है उसका संबंध भगवान से जुड़ जाता है। आगे सनकादि ने सप्ताह विधि बताई। सूतजी-शौनकजी को बता रहे हैं। नारद ने तब सनकादि का आभार व्यक्त किया। सनकादि ने एक सप्ताह तक कथा कहीं थी। कथा सुन भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, तरूण व स्वस्थ हो गए।
त्रिपुरसुन्दरी महिला स्व सहायता समूह उमरेली (चांपा) के तत्वधान में आयोजित संगीतमय श्री मदभागवत कथा विश्राम के दिन परम पूज्य आचार्य योगेश चन्द्र महाराज (श्रीधाम वृन्दावन) के द्वारा बहुत ही रोचक जानकारी बताई गई।