(वासु सोनी) जांजगीर-चांपा। जिले के नवागढ़ क्षेत्र में प्रशासनिक कार्यों की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है। खासतौर पर पटवारी लक्ष्मी नारायण तिवारी की कार्यशैली चर्चा का विषय बनी हुई है। पटवारी कार्यालय से अधिक अनुपस्थिति में रहते हैं, जिससे आम जनता को अपने काम करवाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
नवागढ़ के इस पटवारी से संपर्क करना किसी चुनौती से कम नहीं है। कार्यालय के बाहर दर्ज उनके संपर्क नंबर पर फोन करने पर भी कोई जवाब नहीं मिलता। ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह कोई सामान्य सरकारी कर्मचारी नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री से भी अधिक व्यस्त व्यक्ति हैं। यदि कोई नागरिक समय पर अपने दस्तावेज़ों और ज़मीन संबंधी कामों के लिए कार्यालय पहुंचता है, तो अक्सर उन्हें “साहब मीटिंग में हैं” या “बाहर गए हैं” जैसे जवाब मिलते हैं। सवाल उठता है कि यदि पटवारी कार्यालय में नहीं मिलते, तो आखिरकार आम लोगों की समस्याओं का समाधान कैसे होगा?
नवागढ़ तहसील प्रशासनिक अराजकता का उदाहरण बनता जा रहा है। अधिकारी और कर्मचारी इतने “व्यस्त” रहते हैं कि फाइलों का निपटारा महीनों तक नहीं हो पाता। आम नागरिक, जो अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं, उन्हें सिर्फ़ निराशा ही हाथ लगती है।
सरकार ने डिजिटल इंडिया और सुशासन की बात कही थी, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही दिख रही है। नवागढ़ तहसील के कर्मचारियों की इस उदासीनता पर उच्च अधिकारियों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। पटवारी जैसे ज़मीनी स्तर के प्रशासनिक पदों पर कार्यरत लोगों को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी, वरना आम जनता का विश्वास सरकारी तंत्र से पूरी तरह उठ जाएगा।