तीर कमान (वासु सोनी)। अब ये क्या सुन लिया भाई। बंदुक…लेकिन कब, कहां, कैसे, किसने और क्यों…फिलहाल ये सब छपने छापने वाले का सवाल है…बताने वाले की जांच जारी है…अब शाम के समय कुछ लोगों को ले आया गया…आसपास गुजरते एक छपने छापने वाले ने मजमा लगा देख लिया…फिर क्या था पूछने पर परत दर परत मामले का तार जुड़ने लगा…पता चला एमपी में ट्रेन से फौजी का बैग चोरी हुआ…जिसमें बंदुक था…चोर ने लंबी उड़ान लगाई और पहुंच गया ससुराल… जहां बंदुक को स्टेशन के समीप किसी सौंदर्य निखार केन्द्र वाले को बेच दिया, मामला यहीं खत्म नहीं होता आगे भी बढ़ा, अब ये बैग और ये असला मतलब बंदुक पहुंच गया चांपा के बरपाली चौक, फिर वहां से पहुंचा रिश्तेदार के घर…चोर तो चोर ठहरा…उगल दिया ससुराल में दिया हूं….अब एमपी के बडे़ ससुराल वाले पहुंच गए कोसा कांसा कंचन की नगरी और हो गया दूध का दूध और पानी का पानी…फिलहाल कई उठ गए जिन्हें रात भर खातिरदारी में रखा गया…क्या पता सुबह का क्या हो…और जाना भी तो एमपी के ससुराल हैं…असला भी मिला और असली भी…बाकी आप समझदार तो हैं ही कुछ ज्यादा जानकारी चाहिए तो एमपी के बड़े ससुराल हो आइए, शायद कुछ उम्मीद बंध जाए…